गजेन्द्र निधि गजेन्द्र फाउंडेशन
हम सब सौभाग्यषाली है कि हमें श्रवण भगवान महावीर के द्वारा संस्थापित तीर्थ का अंग होने एवं श्रावक के महिमामय विरूद से सम्मानित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। श्रावक के लिये प्रभु ने दान, हषील, तप एवं भाव रूप चतुर्विध मोघ सोपान फरमाये। दान उनमें सर्वप्रथम है याने दान मोक्ष मार्ग के अन्य सोपानों का द्वार है।
देवाधिदेव तीर्थंकर भगवंत श्रमण महावीर की पावन वाणी हमें श्रद्धेय गुरु भगवंतों के माध्यम से प्राप्त हुई जिनका स्वयं का निर्मल निरतिचार संयम जीवन मोक्ष मार्ग के साधकों के लिये प्रेरणा पुंज है। उन्हीं विषिष्ट महापुरुषों में से युग मनीषी अध्यात्मयोगी चरित्र चूड़ामणि साधक शिरोमणि आचार्य भगवंत पूज्य श्री 1008 श्री हस्तीमलजी म.सा. के पावन सान्निध्य में बैठने, उनकी महनीय प्रेरणा के अनुरूप नैतिक संस्कार एवं आध्यात्मिक शिक्षा पाने का सौभाग्य हम सबने पाया है।
उन अध्यात्म योगी युग मनीषी युग प्रभावक आचार्य भगवंत का व्यक्तित्व एवं कृतित्व उनका साधनामय जीवन युग युग तक मुमुक्ष आत्माओं के लिये प्रकाष स्तंभ के समान दिशा बोधक रहेगा। जीवन ही नहीं वरन् उनका समाधिकरण भी इतिहास में सदा सर्वदा स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा।
उन महापुरुष की शिक्षा के अनुरूप ज्ञान दर्षन चरित्र की अभिवृद्धि में हम अपना अपेक्षित योगदान कर पायें, हमारा गौरवषाली संघ अपनी उज्जवल विमल यषस्वी परंपरा को निरन्तर विकास करता रहे, अम्मापियरों के गौरवषाली विरुद को हम निभा पायें, प्रभु महावीर की जन जन कल्याणकारी शिक्षाये देष के कोने कोने में फैले उन षिक्षाओं के अनुरूप हम प्राणिमात्र के प्रति बंधुत्व भाव को अपना सकें, सहृदय बन कर उनकी सेवा में अपने जीवन को संयोजित कर सकें, इन्हीं पावन पवित्र उद्देष्यों से उन महापुरुष के आदर्ष ऐतिहासिक मरण जयी साधना की स्मृति में जिस कोष का गठन उदारमना संघ समर्पित श्रावकों द्वारा किया गया, वह है ‘गजेन्द्र निधि’। इसी का सहयोगी कोष है ‘‘गजेन्द्र फाउन्डेषन”। संघ द्वारा जनहितार्थ एवं प्राणिमात्र की कल्याण कामना से किये जाने वाले कार्यों का आयोजन इस कोष के सहयोग से किया जायेगा।
गजेन्द्र निधि व गजेन्द्र फाउंडेशन के प्रमुख उद्देश्य
- शिक्षा एवं चिकित्सा हेतु अभिष्ट सहयोग प्रदान करना।
- जरूरतमंद व्यक्तियों को आजीविका, जीवन यापन एवं उनकी सार सम्भाल हेतु आवष्यक सहयोग प्रदान करना।
- विभिन्न जन कल्याणकारी प्रवृत्तियों में सहयोग करना, इनका संचालन करना।
- संघ व संघ की सहयोगी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग प्रदान करना।
- जन जन में आध्यात्मिक चेतना जागृत करने हेतु अभीष्ट कार्य करना।
- जन जन में नैतिक संस्कारों के वपन हेतु कार्य करना।
- श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रारूपित सिद्धांतों एवं महाप्रतापी क्रियोद्वारक आचार्य श्री रत्नचंद्रजी म.सा. उनके पाटानुपाठ आचार्यों विषेषतः निकट उपकारी प्रातः स्मरणीय परम पूज्य आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. एवं आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. द्वारा उपदिष्ट शिक्षाओ के प्रचार प्रसार एवं क्रियान्विति हेतु आवष्यक कार्य करना।
श्रावक के लिये ‘दान’प्रथम धर्म है। श्रमण भगवान महावीर ने स्वयं फरमाया – ‘‘असंविभागी न हु तस्स मोक्खो” याने अर्जित संसाधनों का संविभाग न करने वाला मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता है।
भारतीय संस्कृति का आदर्श रहा है – ‘‘शत हस्त सभाहर सहस्त्र हस्तं संकिर” अर्थात् यदि तूं सौ हाथ से कमाता है तो हजार हाथों से वितरण कर।
दान की अजस्त्र प्रवाहमान धारा ही धन वैभव को निर्मल बनाये रख सकती है जो अन्यथा धन के अनिवार्यतः परिणाम भोग व नाश ही तो हैं। जो पाया है वह निष्चय ही छूटने वाला है जो छूटना है उसका सदुपयोग ही इसका सर्वश्रेष्ठ प्रयोजन है।
निधि द्वारा सम्प्रति आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड का संचालन किया जा रहा है, साथ ही स्वाध्याय संघ, सम्यग् ज्ञान प्रचारक मंडल एवं अन्य संस्थाओं को सहयोग प्रदान किया जा रहा है। निधि के सहयोग से देष के कई भागों में स्वाध्याय भवनों का निर्माण भी किया गया है। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में प्रचारकों के माध्यम से यह कोश अपने उद्देष्यों की पूर्ति में संलग्न है।
सदस्यताः
ट्रस्ट के उद्देष्यों में विष्वास रखने वाला कोई भी सदाचारी निव्यर्सनी व्यक्ति जो परम पूज्य आचार्य भगवंत की परम्परा का अनुयायी है, वांछनीय सहयोग राषि प्रदान कर इन ‘ट्रस्टों का ट्रस्टी बन सकता है।
गजेन्द्र निधि
गजेन्द्र फाउंडेशन
गजेन्द्र निधि/फाउंडेशन आयकर अधिनियम की धारा 12 A (a) के अन्तर्गत पंजीकृत है। गजेन्द्र निधि/फाउंडेशन को आयकर की धारा 80 G के अन्तर्गत छूट प्राप्त है।