रत्नसंघ

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नाम: पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा.

माता का नाम: स्व. श्रीमती कानूबाइ्रजी

जन्म स्थान: रिंया सेठों की

देवलोक तिथि: विक्रमसंवत् 1840ज्येष्ठकृष्णा षष्ठी

पिता का नाम: स्व. श्री लादूरामजी चंगेरिया

दीक्षा का स्थान: रिंया

दीक्षा का स्थान: रिंया

पूज्य आचार्य श्री कजोड़ीमलजी म.सा. का जन्म किशनगढ़ मे ओसवंशीय श्रावक श्री शम्भूमलजी सोनी के घर-आँगन में माता वंदनाजी की रत्नकुक्षि से हुआ। आठ वर्ष की लघुवय में माता-पिता के स्वर्गगमन से बालक के मन पर वज्रपात हुआ पर अजमेर में सत्संग-सेवा और संत-समागम के सुयोग से आपकी विरक्त भावना उत्तरोत्तर प्रगाढ़ होती गई। श्रेष्ठ कार्यों में प्रायः विध्न आते ही है। दीक्षा रोकने के लिए कोर्ट-कचहरी तक बात गई, किन्तु न्यायाधीश ने आपकी दृढ़ता देखकर दीक्षा की अनुमति दे दी। वि.स. 1887 में माघ शुक्ला सप्तमी को अजमेर में आपकी दीक्षा हुई।
मुनिश्री की शरीर सम्पदा तो थी ही, कान्ति के साथ आत्मिक तेज भी था। गौर वर्ण, कद-काठी से लम्बे और सुडौल शरीर के धनी की मुख-मुद्रा पर गंभीरता और तेजस्विता स्पष्ट झलकती थी। आपकी विद्वत्ता, योग्यता, प्रतिभा देखकर चतुर्विध संघ ने वि.स. 1910 की माघ शुक्ला पंचमी को आचार्य-पद प्रदान किया।
आचार्य श्री कजोड़ीमलजी म.सा. का व्यक्तित्व-कृतित्व प्रभावी शरीर सम्पदा से सम्पन्न पूज्य श्री प्रत्युत्पन्नमति के साथ व्यंगात्मक भाषा को संयमित वचनों से समाधान देने में सिद्धहस्त थे। 26 वर्षों के आपके शासन में तेरह मुनियों ने संयम-पथ स्वीकार किया। वि.स. 1936 की वैशाख शुक्ला तृतीया को अजमेर में संलेखना-संथारे के साथ आपका समाधिमरण हुआ।

नाम: पूज्य आचार्य श्री कजोड़ीमलजी म.सा.

माता का नाम: श्रीमती वंदनाजी

पिता का नाम: श्री शम्भूलालजी सोनी

जन्म स्थान: किशनगढ़ (अजमेर) राज.

देवलोक तिथि: विक्रमसंवत् 1936,वैशाख शुक्लातृतीया

दीक्षा का स्थान: अजमेर

देवलोक स्थान: अजमेर

पूज्य आचार्य श्री कजोड़ीमलजी म.सा. का जन्म किशनगढ़ मे ओसवंशीय श्रावक श्री शम्भूमलजी सोनी के घर-आँगन में माता वंदनाजी की रत्नकुक्षि से हुआ। आठ वर्ष की लघुवय में माता-पिता के स्वर्गगमन से बालक के मन पर वज्रपात हुआ पर अजमेर में सत्संग-सेवा और संत-समागम के सुयोग से आपकी विरक्त भावना उत्तरोत्तर प्रगाढ़ होती गई। श्रेष्ठ कार्यों में प्रायः विध्न आते ही है। दीक्षा रोकने के लिए कोर्ट-कचहरी तक बात गई, किन्तु न्यायाधीश ने आपकी दृढ़ता देखकर दीक्षा की अनुमति दे दी। वि.स. 1887 में माघ शुक्ला सप्तमी को अजमेर में आपकी दीक्षा हुई।
मुनिश्री की शरीर सम्पदा तो थी ही, कान्ति के साथ आत्मिक तेज भी था। गौर वर्ण, कद-काठी से लम्बे और सुडौल शरीर के धनी की मुख-मुद्रा पर गंभीरता और तेजस्विता स्पष्ट झलकती थी। आपकी विद्वत्ता, योग्यता, प्रतिभा देखकर चतुर्विध संघ ने वि.स. 1910 की माघ शुक्ला पंचमी को आचार्य-पद प्रदान किया।
आचार्य श्री कजोड़ीमलजी म.सा. का व्यक्तित्व-कृतित्व प्रभावी शरीर सम्पदा से सम्पन्न पूज्य श्री प्रत्युत्पन्नमति के साथ व्यंगात्मक भाषा को संयमित वचनों से समाधान देने में सिद्धहस्त थे। 26 वर्षों के आपके शासन में तेरह मुनियों ने संयम-पथ स्वीकार किया। वि.स. 1936 की वैशाख शुक्ला तृतीया को अजमेर में संलेखना-संथारे के साथ आपका समाधिमरण हुआ।