रत्नसंघ

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नाम: पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा.

माता का नाम: स्व. श्रीमती कानूबाइ्रजी

जन्म स्थान: रिंया सेठों की

देवलोक तिथि: विक्रमसंवत् 1840ज्येष्ठकृष्णा षष्ठी

पिता का नाम: स्व. श्री लादूरामजी चंगेरिया

दीक्षा का स्थान: रिंया

दीक्षा का स्थान: रिंया

परम्परा के तीसरे पट्टधर आचार्य पूज्य श्री हमीरमलजी म.सा. परम गुरुभक्त, विनय मूर्ति और विशिष्ट साधक महापुरूष थे। नागौर मूल के श्रावकरत्न श्री नगराजजी गाँधी के घर-आँगन में माता ज्ञानदेवीजी रत्नकुक्षि से 1852 में जन्म बालक हमीरमल को मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में पिता के वियेाग से संसार की असारता का भान हुआ। वि.स. 1863 की फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को बिरांटिया ग्राम में पूज्य श्रीरत्नचन्द्रजी म.सा. ने हमीरमलजी को दीक्षित किया। ज्ञान-क्रिया सम्पन्न मुनिश्री ने चार विगय का त्याग तो किया ही, दस द्रव्यों की मर्यादा भी कर ली। परीषह विजयी पूज्य श्री हमीरमलजी म.सा. प्रखर उपदेशक थे। विनयचन्द्र चोबीसी के रचयिता श्रावकरत्न श्री विनयचन्द्रजी कुंभट ने पूज्य श्री हमीरमलजी म.सा. के वचन रूपी बीज को विद्वत्समाज तक पहुँचाया। आचार्यश्री के लेखन-कला बड़ी सुन्दर थी। उनके लिखे ग्रन्थ आज भी अनमोल निधि के रूप में सुरक्षित है।
अपने 48 चातुर्मासों में से 39 चातुर्मास गुरुदेव की सेवा में किए और शेष 9 चातुर्मास स्वतन्त्र किए। वि.स. 1910 की कार्तिक कृष्णा (एकम्) प्रतिपदा को नागौर में आपका संथारा संलेखना सहित समाधि मरण हुआ।

नाम: पूज्य आचार्य श्री हमीरमलजी म.सा.

माता का नाम: स्व. श्रीमती ज्ञानदेवीजी

पिता का नाम: स्व. श्री नगराजजी गांधी

जन्म स्थान: नागौर

देवलोक तिथि: विक्रमसंवत 1910,कार्तिक कृष्णा एकम्

दीक्षा का स्थान: बिरांटिया

देवलोक स्थान: नागौर (राज.)

परम्परा के तीसरे पट्टधर आचार्य पूज्य श्री हमीरमलजी म.सा. परम गुरुभक्त, विनय मूर्ति और विशिष्ट साधक महापुरूष थे। नागौर मूल के श्रावकरत्न श्री नगराजजी गाँधी के घर-आँगन में माता ज्ञानदेवीजी रत्नकुक्षि से 1852 में जन्म बालक हमीरमल को मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में पिता के वियेाग से संसार की असारता का भान हुआ। वि.स. 1863 की फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को बिरांटिया ग्राम में पूज्य श्रीरत्नचन्द्रजी म.सा. ने हमीरमलजी को दीक्षित किया। ज्ञान-क्रिया सम्पन्न मुनिश्री ने चार विगय का त्याग तो किया ही, दस द्रव्यों की मर्यादा भी कर ली। परीषह विजयी पूज्य श्री हमीरमलजी म.सा. प्रखर उपदेशक थे। विनयचन्द्र चोबीसी के रचयिता श्रावकरत्न श्री विनयचन्द्रजी कुंभट ने पूज्य श्री हमीरमलजी म.सा. के वचन रूपी बीज को विद्वत्समाज तक पहुँचाया। आचार्यश्री के लेखन-कला बड़ी सुन्दर थी। उनके लिखे ग्रन्थ आज भी अनमोल निधि के रूप में सुरक्षित है।
अपने 48 चातुर्मासों में से 39 चातुर्मास गुरुदेव की सेवा में किए और शेष 9 चातुर्मास स्वतन्त्र किए। वि.स. 1910 की कार्तिक कृष्णा (एकम्) प्रतिपदा को नागौर में आपका संथारा संलेखना सहित समाधि मरण हुआ।