नाम: पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा.
माता का नाम: स्व. श्रीमती कानूबाइ्रजी
जन्म स्थान: रिंया सेठों की
देवलोक तिथि: विक्रमसंवत् 1840ज्येष्ठकृष्णा षष्ठी
पिता का नाम: स्व. श्री लादूरामजी चंगेरिया
दीक्षा का स्थान: रिंया
दीक्षा का स्थान: रिंया
आगमज्ञ, प्रवचन-प्रीााकर, व्यसन मुक्ति प्रबल प्रेरण, जिनशासन गौरव आचार्यगृप्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. रत्नवंश के अष्टम पट्टधर हैं, गुरु हस्ती के उत्तराधिकारी हैं। आपका जन्म जोधपुर जिलान्तर्गत पुण्यधरा पीपाड़शहर में वि.स. 1995 की चैत्र कृष्णा अष्टमी को संघ-प्रेमी सुश्रावक श्री मोतीलालजी गाँधी के घर-बाँगन में सुश्राविका श्रीमती मोहिनीदेवीजी की रत्नकुक्षि से हुआ। छोटी बहिन के वियोग से संसार की असारता और जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास हाने तथा गुरु-सेवा मे समर्पण के बल पर आपकी वैराग्य भावना वि.स. 2020 की कार्तिक शुक्ला षष्ठी को साकार हुई। आचार्य श्री हस्ती के पीपाड़शहर चातुर्मास में पीपाड़शहर के मूल के मुमुक्षु बन्धु की दीक्षा उस चातुर्मास की महतवपूर्ण उपलब्धि रही।
गुरु चरण-सेवा मे धूप-छाँव की तरह लीन होकर श्रमण जीवन का अभ्यास किया। ज्ञानाराधन-तपाराधन-धर्माराधन में पुरूषार्थ करकरे प्रवचन में प्रवीणता प्राप्त करने वाले सुयोग्य गुरु के सुयोग्य शिष्य ने 2020 से 2047 तक केवल मात्र एक चातुर्मास (नागौर) को छोड़कर शेष सभी चातुर्मास और विरण-विहार आराध्य गुरुवर्य के पावन सान्निध्य में सम्पन्न किये। गुरु-सेवा मे साम्प्रदायिक, सहिष्णुता, कथनी-करनी की एकरूपता, सिद्धान्तप्रियता और ज्ञान-क्रिया में पुरूषार्थ के बल पर उन्होंने सुयोग्य संतरत्न के रूप में अपनी पहचान बना ली। गुरू-सेवा मे रहकर नवदीक्षित मुनि ने संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण और आगम शास्त्रों का तनस्पर्शी ज्ञान अर्जित किया। राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, मेरवाड़ा, गोडवाड़, पल्लीवाल, पोरवाल, हाड़ौती तथा सीमान्त क्षेत्र सिंवाची पट्टी के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में गुरुवर्य की चरण-सन्निधि में रहकर अपने शिष्यरत्न को निखारा।
आचार्य भगवन्त के स्वर्गगमन के पश्चात् वि.स. 2048 की ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी को जोधपुर में चतुर्विध संघ ने चादर महोतसव का भव्य आयोजन कर रत्नवंश के अष्टम पट्टधर का हर्षोंल्लास के साथ बहुमान किया। चादर महोत्सव पर विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए गुरु हस्ती के पट्टधर गुरु हीरा ने कहा कि अभी जो चादर मुझे ओढ़ाई गई वह प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा और स्नेह का प्रतीक है। चादर का एक-एक तार एक दूसरे के अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, ऐसे ही संघ का हर सदस्य, संघ अनुशासन से जुडा रहे और किसी का किसी से अलगाव नहीं रहे। तत्कालीन संघाध्यक्ष श्री मोफतराजजी मुणोत ने अपेक्षा रखी कि आप रत्नसंघ का ही नहीं, सम्पूर्ण जैन समाज की अपेक्षाओं को साकार करेंगे। आचार्य श्री हीरा ने वि.स. 2072 तक 17 संत और 71 सतियों को प्रव्रजित किया है, साथ ही साथ संघ में ज्ञान-दर्शन-चारित्र की अभिवृद्धि के लिए राजस्थान ही नहीं, राजस्थान से बाहर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों में विचरण-विहार की क्रमबद्धता और चातुर्मास करके तीन-तीन पीढ़ियों को संभालने का कठिन श्रम किया है वह अपने-आपमें बड़ी उपलब्धि है।
आचार्य श्री हीरा के शासन काल में अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद् की स्थापना हुई तो श्राविका मण्डल का पुनर्गठन हुआ। शिक्षण बोर्ड की स्थापना, विद्वत परिषद् की पुनः सक्रियता, स्थान-स्थापन पर संस्कार केन्द्रों की स्थापना एवं संचालन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। सामूहिक भोज में रात्रि भोजन त्याग, शीलव्रत के खंद, व्रती श्रावक बनाने का अभियान एवं धर्म स्थान में सामूहिक सामायिक साधना का शुभारम्भ संघ-समाज उन्नयन की दृष्टि से सार्थक प्रयास हैं। आचार्य श्री हीरा आगमज्ञ हैं, प्रवचन-प्रभाकर हैं तो व्यसन मुक्ति के प्रबल प्रेरक हैं। स्वयं आचार धर्म का दृढ़ता पूर्वक पालन करने वाले स्थानकवासी समाज के सबसे ज्येष्ठ आचार्य चतुर्विध संघ की सम्यक् सारणा-वारणा-धारणा कर रहे हैं। आपके शासनकाल मे आचार्य श्री हस्ती जन्म शताब्दी वर्ष, आचार्य श्री हीरा-उपाध्याय श्रीमान की दीक्षा अर्द्धशती और आचार्यश्री का आचार्य पद रजत वर्ष को साधना-आराधना के रूप में चतुर्विध संघ द्वारा मनाया जा रहा है।
आचार्य श्री हीरा का व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व प्रभावी है। चतुर्विध संघ गुरु हस्ती पट्टधर गुरु हीरा से अपेक्षा रखता है कि आप संघ-समाज को निरन्तर आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते रहें।
गुरु चरण-सेवा मे धूप-छाँव की तरह लीन होकर श्रमण जीवन का अभ्यास किया। ज्ञानाराधन-तपाराधन-धर्माराधन में पुरूषार्थ करकरे प्रवचन में प्रवीणता प्राप्त करने वाले सुयोग्य गुरु के सुयोग्य शिष्य ने 2020 से 2047 तक केवल मात्र एक चातुर्मास (नागौर) को छोड़कर शेष सभी चातुर्मास और विरण-विहार आराध्य गुरुवर्य के पावन सान्निध्य में सम्पन्न किये। गुरु-सेवा मे साम्प्रदायिक, सहिष्णुता, कथनी-करनी की एकरूपता, सिद्धान्तप्रियता और ज्ञान-क्रिया में पुरूषार्थ के बल पर उन्होंने सुयोग्य संतरत्न के रूप में अपनी पहचान बना ली। गुरू-सेवा मे रहकर नवदीक्षित मुनि ने संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण और आगम शास्त्रों का तनस्पर्शी ज्ञान अर्जित किया। राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, मेरवाड़ा, गोडवाड़, पल्लीवाल, पोरवाल, हाड़ौती तथा सीमान्त क्षेत्र सिंवाची पट्टी के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में गुरुवर्य की चरण-सन्निधि में रहकर अपने शिष्यरत्न को निखारा।
आचार्य भगवन्त के स्वर्गगमन के पश्चात् वि.स. 2048 की ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी को जोधपुर में चतुर्विध संघ ने चादर महोतसव का भव्य आयोजन कर रत्नवंश के अष्टम पट्टधर का हर्षोंल्लास के साथ बहुमान किया। चादर महोत्सव पर विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए गुरु हस्ती के पट्टधर गुरु हीरा ने कहा कि अभी जो चादर मुझे ओढ़ाई गई वह प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा और स्नेह का प्रतीक है। चादर का एक-एक तार एक दूसरे के अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, ऐसे ही संघ का हर सदस्य, संघ अनुशासन से जुडा रहे और किसी का किसी से अलगाव नहीं रहे। तत्कालीन संघाध्यक्ष श्री मोफतराजजी मुणोत ने अपेक्षा रखी कि आप रत्नसंघ का ही नहीं, सम्पूर्ण जैन समाज की अपेक्षाओं को साकार करेंगे। आचार्य श्री हीरा ने वि.स. 2072 तक 17 संत और 71 सतियों को प्रव्रजित किया है, साथ ही साथ संघ में ज्ञान-दर्शन-चारित्र की अभिवृद्धि के लिए राजस्थान ही नहीं, राजस्थान से बाहर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों में विचरण-विहार की क्रमबद्धता और चातुर्मास करके तीन-तीन पीढ़ियों को संभालने का कठिन श्रम किया है वह अपने-आपमें बड़ी उपलब्धि है।
आचार्य श्री हीरा के शासन काल में अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद् की स्थापना हुई तो श्राविका मण्डल का पुनर्गठन हुआ। शिक्षण बोर्ड की स्थापना, विद्वत परिषद् की पुनः सक्रियता, स्थान-स्थापन पर संस्कार केन्द्रों की स्थापना एवं संचालन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। सामूहिक भोज में रात्रि भोजन त्याग, शीलव्रत के खंद, व्रती श्रावक बनाने का अभियान एवं धर्म स्थान में सामूहिक सामायिक साधना का शुभारम्भ संघ-समाज उन्नयन की दृष्टि से सार्थक प्रयास हैं। आचार्य श्री हीरा आगमज्ञ हैं, प्रवचन-प्रभाकर हैं तो व्यसन मुक्ति के प्रबल प्रेरक हैं। स्वयं आचार धर्म का दृढ़ता पूर्वक पालन करने वाले स्थानकवासी समाज के सबसे ज्येष्ठ आचार्य चतुर्विध संघ की सम्यक् सारणा-वारणा-धारणा कर रहे हैं। आपके शासनकाल मे आचार्य श्री हस्ती जन्म शताब्दी वर्ष, आचार्य श्री हीरा-उपाध्याय श्रीमान की दीक्षा अर्द्धशती और आचार्यश्री का आचार्य पद रजत वर्ष को साधना-आराधना के रूप में चतुर्विध संघ द्वारा मनाया जा रहा है।
आचार्य श्री हीरा का व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व प्रभावी है। चतुर्विध संघ गुरु हस्ती पट्टधर गुरु हीरा से अपेक्षा रखता है कि आप संघ-समाज को निरन्तर आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते रहें।
नाम: जिनशासन गौरव परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा.
माता का नाम: स्व.श्रीमती मोहिनदेवीजी गाँधी
पिता का नाम: स्व. श्री मोतीलालजी गाँधी
जन्म दिनांक: 13 Mar 1939
दीक्षा की तिथि: 23 Oct 1963
जन्म स्थान: पीपाड़ शहर-जोधपुर
दीक्षा का स्थान: पीपाड़ शहर-जोधपुर
आगमज्ञ, प्रवचन-प्रीााकर, व्यसन मुक्ति प्रबल प्रेरण, जिनशासन गौरव आचार्यगृप्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. रत्नवंश के अष्टम पट्टधर हैं, गुरु हस्ती के उत्तराधिकारी हैं। आपका जन्म जोधपुर जिलान्तर्गत पुण्यधरा पीपाड़शहर में वि.स. 1995 की चैत्र कृष्णा अष्टमी को संघ-प्रेमी सुश्रावक श्री मोतीलालजी गाँधी के घर-बाँगन में सुश्राविका श्रीमती मोहिनीदेवीजी की रत्नकुक्षि से हुआ। छोटी बहिन के वियोग से संसार की असारता और जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास हाने तथा गुरु-सेवा मे समर्पण के बल पर आपकी वैराग्य भावना वि.स. 2020 की कार्तिक शुक्ला षष्ठी को साकार हुई। आचार्य श्री हस्ती के पीपाड़शहर चातुर्मास में पीपाड़शहर के मूल के मुमुक्षु बन्धु की दीक्षा उस चातुर्मास की महतवपूर्ण उपलब्धि रही।
गुरु चरण-सेवा मे धूप-छाँव की तरह लीन होकर श्रमण जीवन का अभ्यास किया। ज्ञानाराधन-तपाराधन-धर्माराधन में पुरूषार्थ करकरे प्रवचन में प्रवीणता प्राप्त करने वाले सुयोग्य गुरु के सुयोग्य शिष्य ने 2020 से 2047 तक केवल मात्र एक चातुर्मास (नागौर) को छोड़कर शेष सभी चातुर्मास और विरण-विहार आराध्य गुरुवर्य के पावन सान्निध्य में सम्पन्न किये। गुरु-सेवा मे साम्प्रदायिक, सहिष्णुता, कथनी-करनी की एकरूपता, सिद्धान्तप्रियता और ज्ञान-क्रिया में पुरूषार्थ के बल पर उन्होंने सुयोग्य संतरत्न के रूप में अपनी पहचान बना ली। गुरू-सेवा मे रहकर नवदीक्षित मुनि ने संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण और आगम शास्त्रों का तनस्पर्शी ज्ञान अर्जित किया। राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, मेरवाड़ा, गोडवाड़, पल्लीवाल, पोरवाल, हाड़ौती तथा सीमान्त क्षेत्र सिंवाची पट्टी के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में गुरुवर्य की चरण-सन्निधि में रहकर अपने शिष्यरत्न को निखारा।
आचार्य भगवन्त के स्वर्गगमन के पश्चात् वि.स. 2048 की ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी को जोधपुर में चतुर्विध संघ ने चादर महोतसव का भव्य आयोजन कर रत्नवंश के अष्टम पट्टधर का हर्षोंल्लास के साथ बहुमान किया। चादर महोत्सव पर विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए गुरु हस्ती के पट्टधर गुरु हीरा ने कहा कि अभी जो चादर मुझे ओढ़ाई गई वह प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा और स्नेह का प्रतीक है। चादर का एक-एक तार एक दूसरे के अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, ऐसे ही संघ का हर सदस्य, संघ अनुशासन से जुडा रहे और किसी का किसी से अलगाव नहीं रहे। तत्कालीन संघाध्यक्ष श्री मोफतराजजी मुणोत ने अपेक्षा रखी कि आप रत्नसंघ का ही नहीं, सम्पूर्ण जैन समाज की अपेक्षाओं को साकार करेंगे। आचार्य श्री हीरा ने वि.स. 2072 तक 17 संत और 71 सतियों को प्रव्रजित किया है, साथ ही साथ संघ में ज्ञान-दर्शन-चारित्र की अभिवृद्धि के लिए राजस्थान ही नहीं, राजस्थान से बाहर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों में विचरण-विहार की क्रमबद्धता और चातुर्मास करके तीन-तीन पीढ़ियों को संभालने का कठिन श्रम किया है वह अपने-आपमें बड़ी उपलब्धि है।
आचार्य श्री हीरा के शासन काल में अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद् की स्थापना हुई तो श्राविका मण्डल का पुनर्गठन हुआ। शिक्षण बोर्ड की स्थापना, विद्वत परिषद् की पुनः सक्रियता, स्थान-स्थापन पर संस्कार केन्द्रों की स्थापना एवं संचालन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। सामूहिक भोज में रात्रि भोजन त्याग, शीलव्रत के खंद, व्रती श्रावक बनाने का अभियान एवं धर्म स्थान में सामूहिक सामायिक साधना का शुभारम्भ संघ-समाज उन्नयन की दृष्टि से सार्थक प्रयास हैं। आचार्य श्री हीरा आगमज्ञ हैं, प्रवचन-प्रभाकर हैं तो व्यसन मुक्ति के प्रबल प्रेरक हैं। स्वयं आचार धर्म का दृढ़ता पूर्वक पालन करने वाले स्थानकवासी समाज के सबसे ज्येष्ठ आचार्य चतुर्विध संघ की सम्यक् सारणा-वारणा-धारणा कर रहे हैं। आपके शासनकाल मे आचार्य श्री हस्ती जन्म शताब्दी वर्ष, आचार्य श्री हीरा-उपाध्याय श्रीमान की दीक्षा अर्द्धशती और आचार्यश्री का आचार्य पद रजत वर्ष को साधना-आराधना के रूप में चतुर्विध संघ द्वारा मनाया जा रहा है।
आचार्य श्री हीरा का व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व प्रभावी है। चतुर्विध संघ गुरु हस्ती पट्टधर गुरु हीरा से अपेक्षा रखता है कि आप संघ-समाज को निरन्तर आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते रहें।
गुरु चरण-सेवा मे धूप-छाँव की तरह लीन होकर श्रमण जीवन का अभ्यास किया। ज्ञानाराधन-तपाराधन-धर्माराधन में पुरूषार्थ करकरे प्रवचन में प्रवीणता प्राप्त करने वाले सुयोग्य गुरु के सुयोग्य शिष्य ने 2020 से 2047 तक केवल मात्र एक चातुर्मास (नागौर) को छोड़कर शेष सभी चातुर्मास और विरण-विहार आराध्य गुरुवर्य के पावन सान्निध्य में सम्पन्न किये। गुरु-सेवा मे साम्प्रदायिक, सहिष्णुता, कथनी-करनी की एकरूपता, सिद्धान्तप्रियता और ज्ञान-क्रिया में पुरूषार्थ के बल पर उन्होंने सुयोग्य संतरत्न के रूप में अपनी पहचान बना ली। गुरू-सेवा मे रहकर नवदीक्षित मुनि ने संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण और आगम शास्त्रों का तनस्पर्शी ज्ञान अर्जित किया। राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, मेरवाड़ा, गोडवाड़, पल्लीवाल, पोरवाल, हाड़ौती तथा सीमान्त क्षेत्र सिंवाची पट्टी के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में गुरुवर्य की चरण-सन्निधि में रहकर अपने शिष्यरत्न को निखारा।
आचार्य भगवन्त के स्वर्गगमन के पश्चात् वि.स. 2048 की ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी को जोधपुर में चतुर्विध संघ ने चादर महोतसव का भव्य आयोजन कर रत्नवंश के अष्टम पट्टधर का हर्षोंल्लास के साथ बहुमान किया। चादर महोत्सव पर विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए गुरु हस्ती के पट्टधर गुरु हीरा ने कहा कि अभी जो चादर मुझे ओढ़ाई गई वह प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा और स्नेह का प्रतीक है। चादर का एक-एक तार एक दूसरे के अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, ऐसे ही संघ का हर सदस्य, संघ अनुशासन से जुडा रहे और किसी का किसी से अलगाव नहीं रहे। तत्कालीन संघाध्यक्ष श्री मोफतराजजी मुणोत ने अपेक्षा रखी कि आप रत्नसंघ का ही नहीं, सम्पूर्ण जैन समाज की अपेक्षाओं को साकार करेंगे। आचार्य श्री हीरा ने वि.स. 2072 तक 17 संत और 71 सतियों को प्रव्रजित किया है, साथ ही साथ संघ में ज्ञान-दर्शन-चारित्र की अभिवृद्धि के लिए राजस्थान ही नहीं, राजस्थान से बाहर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों में विचरण-विहार की क्रमबद्धता और चातुर्मास करके तीन-तीन पीढ़ियों को संभालने का कठिन श्रम किया है वह अपने-आपमें बड़ी उपलब्धि है।
आचार्य श्री हीरा के शासन काल में अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद् की स्थापना हुई तो श्राविका मण्डल का पुनर्गठन हुआ। शिक्षण बोर्ड की स्थापना, विद्वत परिषद् की पुनः सक्रियता, स्थान-स्थापन पर संस्कार केन्द्रों की स्थापना एवं संचालन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। सामूहिक भोज में रात्रि भोजन त्याग, शीलव्रत के खंद, व्रती श्रावक बनाने का अभियान एवं धर्म स्थान में सामूहिक सामायिक साधना का शुभारम्भ संघ-समाज उन्नयन की दृष्टि से सार्थक प्रयास हैं। आचार्य श्री हीरा आगमज्ञ हैं, प्रवचन-प्रभाकर हैं तो व्यसन मुक्ति के प्रबल प्रेरक हैं। स्वयं आचार धर्म का दृढ़ता पूर्वक पालन करने वाले स्थानकवासी समाज के सबसे ज्येष्ठ आचार्य चतुर्विध संघ की सम्यक् सारणा-वारणा-धारणा कर रहे हैं। आपके शासनकाल मे आचार्य श्री हस्ती जन्म शताब्दी वर्ष, आचार्य श्री हीरा-उपाध्याय श्रीमान की दीक्षा अर्द्धशती और आचार्यश्री का आचार्य पद रजत वर्ष को साधना-आराधना के रूप में चतुर्विध संघ द्वारा मनाया जा रहा है।
आचार्य श्री हीरा का व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व प्रभावी है। चतुर्विध संघ गुरु हस्ती पट्टधर गुरु हीरा से अपेक्षा रखता है कि आप संघ-समाज को निरन्तर आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते रहें।