रत्नसंघ

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नाम: पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा.

माता का नाम: स्व. श्रीमती कानूबाइ्रजी

जन्म स्थान: रिंया सेठों की

देवलोक तिथि: विक्रमसंवत् 1840ज्येष्ठकृष्णा षष्ठी

पिता का नाम: स्व. श्री लादूरामजी चंगेरिया

दीक्षा का स्थान: रिंया

दीक्षा का स्थान: रिंया

परम्परा के मूल पुरूष पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. परम प्रतापी, क्षमामूर्ति पूज्य आचार्य श्री भूधरजी म.सा. के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे। उन्होंने वि.सं. 1794 की फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को दीक्षा अंगीकार की। अपने 45 वर्ष की निर्मल संयम-साधना में शिष्य परिवार होते हुए भी उस महापुरूष ने आचार्य पद ग्रहण नहीं किया और गुरुभ्राता पूज्य श्री जयमलजी म.सा. के साथ रहकर परस्पर प्रेम का अनूठा आदर्श उपस्थित किया। निर्मल संयम साधक, दृढ़ प्रतिज्ञ परम्परा के मूलपुरूष ने परम्परा का बीजारोपण किया। गुरुभ्राता के प्रति घनिष्ठ प्रेम का पाठ इस परम्परा का आदर्श रहा। अपने आराध्य गुरुवर्य पूज्य आचार्य श्री भूधरजी म.सा. के स्वर्गगमन पश्चात् गुरुभ्राता पूज्य श्री जयमलजी म.सा. के साथ परम्परा के मूलपुरूष पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. ने भी प्रतिज्ञा ले ली कि अब धरती पर लेटकर निद्रा नहीं लूंगा। पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. ने 45 यशस्वी चातुर्मास करके शासन की महती प्रभावना की।

नाम: पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा.

माता का नाम: स्व. श्रीमती कानूबाइ्रजी

पिता का नाम: स्व. श्री लादूरामजी चंगेरिया

जन्म स्थान: रिंया सेठों की

देवलोक तिथि: विक्रमसंवत् 1840 ज्येष्ठकृष्णा षष्ठी

दीक्षा का स्थान: रिंया

देवलोक स्थान: नागौर (राज.)

परम्परा के मूल पुरूष पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. परम प्रतापी, क्षमामूर्ति पूज्य आचार्य श्री भूधरजी म.सा. के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे। उन्होंने वि.सं. 1794 की फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को दीक्षा अंगीकार की। अपने 45 वर्ष की निर्मल संयम-साधना में शिष्य परिवार होते हुए भी उस महापुरूष ने आचार्य पद ग्रहण नहीं किया और गुरुभ्राता पूज्य श्री जयमलजी म.सा. के साथ रहकर परस्पर प्रेम का अनूठा आदर्श उपस्थित किया। निर्मल संयम साधक, दृढ़ प्रतिज्ञ परम्परा के मूलपुरूष ने परम्परा का बीजारोपण किया। गुरुभ्राता के प्रति घनिष्ठ प्रेम का पाठ इस परम्परा का आदर्श रहा। अपने आराध्य गुरुवर्य पूज्य आचार्य श्री भूधरजी म.सा. के स्वर्गगमन पश्चात् गुरुभ्राता पूज्य श्री जयमलजी म.सा. के साथ परम्परा के मूलपुरूष पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. ने भी प्रतिज्ञा ले ली कि अब धरती पर लेटकर निद्रा नहीं लूंगा। पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. ने 45 यशस्वी चातुर्मास करके शासन की महती प्रभावना की।