संघ सेवा सोपान
सम्यग्ज्ञान दर्शन चारित्र गुण रूप रत्नों की प्राप्ति में संघ का महनीय योगदान रहता है। संघ-सेवा, कर्म-निर्जरा का कारण है। इसलिए प्रत्येक सदस्य का कत्र्तव्य है कि वह तन-मन-धन से और समर्पित भाव से संघ-सेवा में उत्तरोत्तर प्रगति करे।
संघ अपनी सहयोगी संस्थाओं और शाखाओं के माध्यम से प्रत्येक संघ सदस्य तक पहुँचने के उद्देश्य के साथ ही ज्ञान-दर्शन-चारित्र की अभिवृद्धि, स्वधर्मी वात्सल्य, लघुता भाव एवं संघ संगठन के कार्य में निरन्तर गतिशील है। प्रत्येक परिवार संघ के विकास और उद्देश्यों की पूर्ति में तन-मन-धन से यथाशक्ति योगदान करे, इस पुनीत लक्ष्य से संघ ने संघ-सेवा सोपान योजना प्रारम्भ की है।
संघ सेवा सोपान योजना के अन्र्तगत संघ के कार्यो के चहुँमुखी विकास हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए दीर्घकालीन योजना का प्रारुप रखा गया है।
आप संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं द्धारा संचालित प्रवृत्तियों के कुशल संचालन के लिए संघ द्धारा प्रस्तावित विभिन्न श्रेणियों का अवलोकन कर संघ के सहयोगी बनने का लक्ष्य रखें। दानदाताओं के नाम संघ की मुख पत्रिका जिनवाणी एवम् बुलेटिन “रत्नम” में प्रकाशित किये जायेंगे।
आपका सहयोग संघ का आधार है। आपके सहयोग, सुझाव एवं मार्गदर्शन से संघ चहुँमुखी विकास एवं प्रगति करेगा, ऐसा विनम्र विश्वास है।
- विनयावनत
- अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ
श्री मोफतराज जी मुणोत
(संयोजक,संघ संरक्षक मण्डल)
श्री धनपत जी सेठिया
(राष्ट्रीय महामंत्री)
स्व. श्री बसंत जी जैन
(राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष)
न्यायाधिपति श्री प्रकाश जी टाटिया
(राष्ट्रीय अध्यक्ष)
श्री कैलाशमल जी दुग्गड़
(रा. उपाध्यक्ष-संघ सेवा सोपान)
श्री महेन्द्र जी कुम्भट
(राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष)
श्री रतनलाल जी बाफना
(संयोजक,शासन सेवा समिति)
श्री आनंद जी चौपड़ा
कार्याध्यक्ष
श्री प्रकाश जी सालेचा
(राष्ट्रीय सं. महामंत्री)
श्री लोकेन्द्रनाथजी मोदी
(राष्ट्रीय सह कोषाध्यक्ष)
श्री बुधमल जी बोहरा
कार्याध्यक्ष
श्री उगमराज जी काँकरिया
(राष्ट्रीय सं. महामंत्री)
श्री अनिलजी सुराणा
(राष्ट्रीय मंत्री-संघ सेवा सोपान)
श्री चंचलमलजी बच्छावत
अध्यक्ष सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल
श्री नरपतराज जी चौपड़ा
निदेशक शिक्षण बोर्ड
श्रीमती मंजू जी भण्डारी
अध्यक्ष श्राविका मण्डल
श्री राजेश जी कर्णावट
निदेशक संस्कार केन्द्र
श्री मनीषजी मेहता
अध्यक्ष युवक परिषद्
श्री चंचलमल जी चोरड़िया
निदेशक स्वाध्याय संघ
संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं की प्रमुख प्रवृतियाँ
- श्रावक संघ
- सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल
- श्राविका मण्डल
- युवक परिषद्
- स्वाध्याय संघ
- शिक्षण बोर्ड
- संस्कार केन्द्र
- गजेन्द्र निधि गजेन्द्र फाउंडेशन
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ
- सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र की रक्षा एवं अभिवृद्धि।
- स्वधर्मी बन्धुओं की वात्सल्य सेवा (वात्सल्य निधि)।
- विरक्त भाई-बहिनों को सहयोग पूर्वक आगे बढ़ाना एवं उनकी शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना।
- प्राचीन ग्रन्थों का रक्षण एवं संवर्धन करना। (श्री शोभाचन्द ज्ञान भण्डार)
- मानव सेवा और वात्सल्य हेतु कार्य करना।
- चतुर्विध संघ के संचालन की व्यवस्था व सहयोग।
- धार्मिक, नैतिक, आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देना।
- महापुरुषों के जन्म, दीक्षा, पुण्य दिवसों को त्याग-तप के साथ मनाना।
- सामाजिक कुरूतियों के उन्मूलन एवं समाज-सुधार के लिए प्रयास करना।
- सामायिक-स्वाध्याय और निव्र्यसनता का प्रचार-प्रसार करना।
- विशिष्ट संघ- सेवियों, विद्वानों, तप-साधकों, स्वाध्यायियों का सम्मान करना। (गुणी अभिनन्दन)
- जीवदया।
- सामायिक-स्वाध्याय भवन निर्माण, भोजनशाला व अतिथिगृह निर्माण में सहयोग प्रदान करना।
- आचार्य हस्ती मेधावी छात्रवृत्ति योजना के अन्तर्गत होनहार मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षण हेतु छात्रवृत्ति प्रदान करना।
- चातुर्मास आयोजन व्यवस्था में सहयेाग प्रदान करना।
- रत्नबंधु परिवारों को संघ से जोडना व संगठन का विकास व विस्तार करना।
- पूज्यमुनिवृन्द व महासती मण्डल की विहार सेवा का लाभ लेना व श्रमणोचित स्वास्थय व चिकित्सा सेवा।
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल
- जिनवाणी हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन।
- जैन इतिहास, आगम एवं अन्य सत्साहित्य का प्रकाशन।
- विद्वत्त संगोष्ठियों का आयोजन।
- धार्मिक,आध्यात्मिक व नैतिक प्रवत्तियों को बढ़ाना।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न श्राविका मण्डल
- अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ की महिला शाखा एवं सहयोगी संस्था के रुप में उनके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य करना।
- आध्यात्मिक एवं धार्मिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।
- श्राविकाओं हेतु नैतिक एवं धार्मिक शिक्षण शिविरों का आयोजन करना।
- आगम अध्ययन के लिए जन-साधारण को प्रेरित करना। (आगम अध्येता योजना)
- श्राविकाओं को ज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय, सक्षम एवं स्वावलम्बी बनाने हेतु संगोष्ठियों का आयोजन करना।
- संघ-सेवा कार्यों में श्राविकाओं को जोड़ना।
- जरुरतमन्द बहिनों को सहयोग प्रदान करना।
- समय-समय पर सन्त-सतीवृन्दों की विहार-सेवा का लाभ लेना।
- श्राविका वर्ग में लेखन, गायन व वक्तृत्वकला का विकास करने हेतु विविध कार्यक्रमों का आयोजन करना।
- समाज में फैल रही कुरुतियों को रोकने का प्रयास करना।
- संघ व संघ की सहयोगी संस्थाओं के कार्यक्रमों में सहयोग करना।
- महिलाओं एवं बालिकाओं हेतु पारिवारिक संस्कार कायक्रमों का संचालन।
- स्वाध्यायी के रूप में पर्युषण पर्व पर सेवाएँ देना।
- बहू-बालिका समिति के माध्यम से बहुओं व बालिकाओं के धार्मिक, आध्यात्मिक व नैतिक उन्नत्ति के प्रयास करना।
- युवा बहिनों एवम् बहुओ को परिवार एवं समाज में धर्म संस्कार, स्नेह व समन्वय हेतु पे्ररित करना।
- भावी पीढी में संस्कारों का वपन हो, इस हेतु जागृत करना।
- बालिकाओं व बहुओं हेतु नैतिक एवं धार्मिक शिक्षण शिविरों एवं संगोष्ठियों का आयोजन करना।
- जरूरतमंद बालक बालिकाओं के शिक्षा की व्यवस्था करना (छात्रवृत्ति योजना)
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद्
- अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ की युवा शाखा एवं सहयोगी संस्था के रूप में उनके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रयास करना।
- चतुर्विध संघ-सेवा।
- युवा वर्ग को सामायिक एवं स्वाध्याय से जुड़ने हेतु प्रेरित करना।
- युवा वर्ग को समाज सेवा से जोड़ना।
- युवा वर्ग को धार्मिक शिक्षण व नैतिक संस्कार की प्रेरणा देना।
- युवकों के जीवन निर्माण हेतु संगठित रूप से प्रयास करना।
- संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं के कार्यक्रमों में सहयोग प्रदान करना।
- युवकों व जनसाधारण में निव्र्यसनता का प्रचार व प्रसार करना।
- स्वरोजगार एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ
- पर्युषण सेवा हेतु स्वाध्यायी सदस्यों की व्यवस्था करना।
- स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्वाध्यायी प्रशिक्षण एवम् गुणवत्ता अभिवृद्धि शिविरों का आयोजन करना।
- स्वाध्याय का प्रचार-प्रसार करना।
- स्वाध्याय शिक्षा का प्रकाशन करना।
- नये स्वाध्यायी तैयार करना।
- संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं के कार्यक्रमों में सहयोग प्रदान करना।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड
- क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित पाठ्यक्रम तैयार करना ।
- निर्धारित पाठ्यक्रम की पुस्तकों का प्रकाशन करना ।
- प्रतिवर्ष परीक्षाओं का आयोजन करना।
- जैनागम स्तोक वारिधि पाठ्यक्रम तैयार करना। (थोकड़ों की परीक्षा)
- वरीयता एवं प्रोत्साहन पुरस्कार की व्यवस्था करना ।
- कार्यशाला का आयोजन करना।
- धार्मिक शिक्षण शिविरों का आयोजन करना।
- प्रचार प्रसार एवं सम्पर्क कार्यक्रम करना ।
- संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं के कार्यक्रमों में सहयोग प्रदान करना ।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न आध्यात्मिक संस्कार केन्द्र
- बालक-बालिकाओं में धार्मिक सुसंस्कार वपित करने तथा जैन धर्म का शिक्षण देने के लिए गांव-गांव में धार्मिक संस्कार केन्द्र (पाठशालाएं) स्थापित करना |
- स्थानकवासी संस्कृति को परिपुष्ट करने एवं स्थानकवासी परम्परा की आडम्बर और दोष रहित शुद्ध मान्यताओं के प्रति आस्था दृढ़ करना।
- समायिक स्वाध्याय से ओत-प्रोत जैन धर्म के निष्णात विद्वान तैयार करने की दिशा में भूमिका तैयार करना।
- अच्छे स्वाध्यायी, व्रतधारी, सुश्रावक बनाने व संयम जीवन को अपनाने की दिशा में छात्र-छात्राओं को प्रेरित करना।
- जैन धर्म का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार करने की दिशा में छात्र-छात्राओं को तैयार करना।
- संघ व जिनशासन के प्रति छात्र-छात्राओं में समर्पण की भावना दृढ़ करना।
- नीतिवान राष्ट्र भक्त नागरिक तैयार करना।
गजेन्द्र निधि गजेन्द्र फाउंडेशन
हम सब सौभाग्यषाली है कि हमें श्रवण भगवान महावीर के द्वारा संस्थापित तीर्थ का अंग होने एवं श्रावक के महिमामय विरूद से सम्मानित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। श्रावक के लिये प्रभु ने दान, हषील, तप एवं भाव रूप चतुर्विध मोघ सोपान फरमाये। दान उनमें सर्वप्रथम है याने दान मोक्ष मार्ग के अन्य सोपानों का द्वार है।
देवाधिदेव तीर्थंकर भगवंत श्रमण महावीर की पावन वाणी हमें श्रद्धेय गुरु भगवंतों के माध्यम से प्राप्त हुई जिनका स्वयं का निर्मल निरतिचार संयम जीवन मोक्ष मार्ग के साधकों के लिये प्रेरणा पुंज है। उन्हीं विषिष्ट महापुरुषों में से युग मनीषी अध्यात्मयोगी चरित्र चूड़ामणि साधक शिरोमणि आचार्य भगवंत पूज्य श्री 1008 श्री हस्तीमलजी म.सा. के पावन सान्निध्य में बैठने, उनकी महनीय प्रेरणा के अनुरूप नैतिक संस्कार एवं आध्यात्मिक शिक्षा पाने का सौभाग्य हम सबने पाया है।
उन अध्यात्म योगी युग मनीषी युग प्रभावक आचार्य भगवंत का व्यक्तित्व एवं कृतित्व उनका साधनामय जीवन युग युग तक मुमुक्ष आत्माओं के लिये प्रकाष स्तंभ के समान दिशा बोधक रहेगा। जीवन ही नहीं वरन् उनका समाधिकरण भी इतिहास में सदा सर्वदा स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा।
उन महापुरुष की शिक्षा के अनुरूप ज्ञान दर्षन चरित्र की अभिवृद्धि में हम अपना अपेक्षित योगदान कर पायें, हमारा गौरवषाली संघ अपनी उज्जवल विमल यषस्वी परंपरा को निरन्तर विकास करता रहे, अम्मापियरों के गौरवषाली विरुद को हम निभा पायें, प्रभु महावीर की जन जन कल्याणकारी शिक्षाये देष के कोने कोने में फैले उन षिक्षाओं के अनुरूप हम प्राणिमात्र के प्रति बंधुत्व भाव को अपना सकें, सहृदय बन कर उनकी सेवा में अपने जीवन को संयोजित कर सकें, इन्हीं पावन पवित्र उद्देष्यों से उन महापुरुष के आदर्ष ऐतिहासिक मरण जयी साधना की स्मृति में जिस कोष का गठन उदारमना संघ समर्पित श्रावकों द्वारा किया गया, वह है ‘गजेन्द्र निधि’। इसी का सहयोगी कोष है ‘‘गजेन्द्र फाउन्डेषन”। संघ द्वारा जनहितार्थ एवं प्राणिमात्र की कल्याण कामना से किये जाने वाले कार्यों का आयोजन इस कोष के सहयोग से किया जायेगा।
गजेन्द्र निधि व गजेन्द्र फाउंडेशन के प्रमुख उद्देश्य
- शिक्षा एवं चिकित्सा हेतु अभिष्ट सहयोग प्रदान करना।
- जरूरतमंद व्यक्तियों को आजीविका, जीवन यापन एवं उनकी सार सम्भाल हेतु आवष्यक सहयोग प्रदान करना।
- विभिन्न जन कल्याणकारी प्रवृत्तियों में सहयोग करना, इनका संचालन करना।
- संघ व संघ की सहयोगी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग प्रदान करना।
- जन जन में आध्यात्मिक चेतना जागृत करने हेतु अभीष्ट कार्य करना।
- जन जन में नैतिक संस्कारों के वपन हेतु कार्य करना।
- श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रारूपित सिद्धांतों एवं महाप्रतापी क्रियोद्वारक आचार्य श्री रत्नचंद्रजी म.सा. उनके पाटानुपाठ आचार्यों विषेषतः निकट उपकारी प्रातः स्मरणीय परम पूज्य आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. एवं आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. द्वारा उपदिष्ट शिक्षाओ के प्रचार प्रसार एवं क्रियान्विति हेतु आवष्यक कार्य करना।
श्रावक के लिये ‘दान’प्रथम धर्म है। श्रमण भगवान महावीर ने स्वयं फरमाया – ‘‘असंविभागी न हु तस्स मोक्खो” याने अर्जित संसाधनों का संविभाग न करने वाला मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता है।
भारतीय संस्कृति का आदर्श रहा है – ‘‘शत हस्त सभाहर सहस्त्र हस्तं संकिर” अर्थात् यदि तूं सौ हाथ से कमाता है तो हजार हाथों से वितरण कर।
दान की अजस्त्र प्रवाहमान धारा ही धन वैभव को निर्मल बनाये रख सकती है जो अन्यथा धन के अनिवार्यतः परिणाम भोग व नाश ही तो हैं। जो पाया है वह निष्चय ही छूटने वाला है जो छूटना है उसका सदुपयोग ही इसका सर्वश्रेष्ठ प्रयोजन है।
निधि द्वारा सम्प्रति आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड का संचालन किया जा रहा है, साथ ही स्वाध्याय संघ, सम्यग् ज्ञान प्रचारक मंडल एवं अन्य संस्थाओं को सहयोग प्रदान किया जा रहा है। निधि के सहयोग से देष के कई भागों में स्वाध्याय भवनों का निर्माण भी किया गया है। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में प्रचारकों के माध्यम से यह कोश अपने उद्देष्यों की पूर्ति में संलग्न है।
सदस्यताः
ट्रस्ट के उद्देष्यों में विष्वास रखने वाला कोई भी सदाचारी निव्यर्सनी व्यक्ति जो परम पूज्य आचार्य भगवंत की परम्परा का अनुयायी है, वांछनीय सहयोग राषि प्रदान कर इन ‘ट्रस्टों का ट्रस्टी बन सकता है।
गजेन्द्र निधि
गजेन्द्र फाउंडेशन
गजेन्द्र निधि/फाउंडेशन आयकर अधिनियम की धारा 12 A (a) के अन्तर्गत पंजीकृत है। गजेन्द्र निधि/फाउंडेशन को आयकर की धारा 80 G के अन्तर्गत छूट प्राप्त है।