रत्नसंघ

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श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ

जिनवाणी संसार रूपी समुद्र से पार उतारने वाली सुदृढ़ एवं सक्षम नाव है। संत उसके कुशल नाविक हैं। लेकिन भारत में अनेक ग्राम नगर ऐसे हैं जहाँ साधु- साध्वियों की सीमित संख्या होने के कारण उनका वहां पहुँच पाना कठिन होता है। ऐसी परिस्थिति में अनेक स्थानों पर हमारे जैन भाई -बहन वीतराग भगवंतो की अमृतमयी वाणी के श्रवण से वंचित रह जाते हैं। फलस्वरूप जैन सिद्धान्तों की बात तो दूर वहाँ के लोग सामान्य रूप से सामायिक सूत्र, प्रतिक्रमण सूत्र आदि की प्रारम्भिक जानकारी तक प्राप्त नहीं कर पाते।

सामायिक-स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक, अखण्ड बाल ब्रह्मचारी, अप्रमत्त साधक, परमपूज्य आचार्यप्रवर 1008 श्री हस्तीमल जी म.सा. ने दूरदर्शिता पूर्ण चिन्तन किया कि ऐसे क्षेत्रो के व्यक्तियों को वीतराग वाणी का लाभ बारह महीने नहीं तो कम से कम पयुर्षण पर्व के आठ दिनों में तो प्राप्त हो । चिन्तन मुखरित हुआ। परिणामस्वरूप साधु एवं श्रावक के मध्य एक ऐसा वर्ग तैयार करने की योजना बनी जो अपने ज्ञान-ध्यान को विकसित करने के साथ पर्युषण पर्व के दिनों में साधु- साध्वियों से वंचित क्षेत्रो में पहुँच कर धार्मिक आराधना सुचारू रूप से करवा सकें। तत्पश्चात विक्रम संवत् 2002 में पर्युषण पर्वाराधना हेतु स्वाध्यायी भेजने का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ|संवत् 2016 में आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. के जयपुर चातुर्मास में स्वाध्यायी प्रवृत्ति को सुदृढ़ रूप से संचालित करने के लिए ‘‘श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर की स्थापना की गई।

  • जहां भी कम से कम 10 जैन परिवार है और चातुर्मास से वंचित रहते हैं उन क्षेत्रों को स्वाध्यायी आमंत्रित करने हेतु प्रेरित करना।
  • स्वाध्यायियों को पर्युषण में सेवा देने हेतु प्रेरित करना।
  • पुराने स्वाध्यायियों के ज्ञान वृद्धि की समीक्षा करना।
  • नये स्वाध्यायी तैयार करना।
  • सामूहिक प्रार्थना, सामायिक, स्वाध्याय करने की प्रेरणा करना।
  • केन्द्रीय, क्षेत्रीय एवं स्थानीय शिविरों का निर्धारण करना।
  • स्वाध्यायी शिक्षक तैयार करना।
  • शाकाहार, व्यसनमुक्ति एवं अहिंसक जीवन शैली का प्रचार-प्रसार करना।
  • संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं की गतिविधियों में सहयोग प्रदान करना।

श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर के वर्तमान में 1100 सक्रिय स्वाध्यायी है।

अभी तक संघ की 10 शाखाएं संचालित है-

पोरवाल, पल्लीवाल, मेवाड़, महाराष्ट्र, जयपुर, विदर्भ, तमिलनाडू, मारवाड़, गुजरात एवं मुम्बई।

स्वाध्यायियों के ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि हो, इस हेतु संघ प्रयासरत है। भारतवर्ष के लगभग सभी राज्यों में पर्युषण पर्वाराधना हेतु स्वाध्यायी पहुंचे इस हेतु भी संघ द्वारा प्रचार-प्रसार के माध्यम से प्रयासरत है।

स्वाध्याय संघ में स्वाध्यायी के रूप में सेवा देने हेतु अग्रांकित नियम पालन करना आवश्यक है-

  • पर्युषण पर्व में यथाशक्य बाहर सेवा दूंगा।
  • सप्त कुव्यसनों का सेवन नहीं करूंगा।
  • कम से कम सप्ताह में एक बार सामूहिक सामायिक में भाग लूंगा।
  • मैं प्रतिदिन 20 मिनट स्वाध्याय करूंगा।
  • समय पर स्वाध्याय संघ द्धारा निर्देशित सभी निर्देशों का पालन करूंगा

देश एवं विदेश के उन क्षेत्रों में जहाँ संत व साध्वी वृन्द के चातुर्मास नहीं हो, पर्युषण काल में उन क्षेत्रों में धर्माराधना हेतु अनुवी तथा योग्य स्वधयायियों को  भेजकर पयुर्षण पर्वाराधना सुचारू रूप से करवाना, स्वाध्याय संघ की प्रमुख प्रवर्तिया है। वर्तमान में इस संघ में लगग 1100 स्वाध्यायी हैं। जिनमें से लगभग 425 स्वाध्यायी प्रतिवर्ष पर्यूषण पर्व में अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।

समाज में योग्य एवं अनुभवी स्वाध्यायी तैयार करने के लिए समय समय पर स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर आयोजित करना स्वाध्याय संघ की एक प्रमुख प्रवर्तिया है। ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर उगम साधन है। शिविरों में स्वाध्यायियों को अधिकाधिक ज्ञानार्जन हो सके, अतः इस हेतु प्रयोग भी किए जा रहे हैं। अतः अधिक से अधिक जिज्ञासु  भाई-बहन एवं स्वाध्यायी बन्धु शिविरों में भाग लेकर अपनी ज्ञानवृद्धि करें, ऐसी अपेक्षा है।

प्रत्येक ग्राम व नगर में स्वाध्याय तथा सामायिक का शंखनाद करने एवं आध्यात्मिक जागृति पैदा करने हेतु स्थानीय आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षण शिविरों का (बच्चों एवं बड़ों का) आयोजन करना भी स्वाध्याय संघ की एक प्रवर्तिया है। स्थानीय शिविरों की उपयोगिता स्वतः सिद्ध है, क्योकि इसमें व्यवस्था संबंधी खर्च कोभी संघ व समाज पर नहीं पड़ता है। अतः सभी श्रीसंघ एवं समाज ऐसे शिविरों की उपयोगिता समझकर अपने यहाँ पर स्थानीय शिविर आयोजित करवायें। यदि कोई श्रीसंघ अपने यहाँ पर स्थानीय शिविर आयोजित कराना चाहे तो इस संबंध में स्वाध्याय संघ कार्यालय से सम्पर्क करावें।

श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ जोधपुर द्धारा स्वाध्यायियों से व्यक्तिगत सम्पर्क कर ज्ञानवर्द्धन एवं सदाचरण की प्रेरणा प्रदान करने तथा जनसाधारण को सामायिक-स्वाध्याय प्रवर्तिया से जोड़ने के लिए समये पर प्रचार-प्रसार यात्राओं का आयोजन किया जाता है। ये कार्यक्रम 1987 से निरन्तर चल रहे हैं। प्रचार-प्रसार कार्य क्रमो के अन्तर्गत सेवा देने वाले विशिष्ट स्वाध्यायी साधक एवं मनीषी चिन्तक होते हैं जो समाज में व्याप्त कुरीतियो एवं दुव्र्यसनो के निवारण तथा सामायिक-स्वाध्याय आदि द्वारा ज्ञानवर्द्धन की पुरजोर प्रेरणा प्रदान करते है तथा निरन्तर स्वाध्याय करने, स्वाध्यायी बनने एवं पाठशालाएँ प्रारं करने की प्रेरणा करते हैं।

प्रति वर्ष पर्युषणए प्रशिक्षण शिविरों एवं प्रचार.प्रसार के माध्यम से प्रेरणा कर योग्यए युवा एवं विशिष्ट प्रभावशाली लगभग को नये स्वाध्यायी बनाये जाते हैं जो पर्वाधिराज पर्युषण में अपनी प्रभावी सेवा द्धारा युवा पीढ़ी को धर्म से जोड़कर जिनवाणी की भावना करते हैं।

स्वाध्यायियो को अपनी ज्ञान वृद्धि हेतु पर्युषण संबंधी समस्त साहित्य निःशुल्क उपलब्ध कराया जाताहै। पर्युषण के अतिरिक्त अन्य धार्मिक साहित्य भी कोई स्वाध्यायी खरीदना चाहे तो श्री कल्याणमल चंचलमल चौरड़िया ट्रस्ट जोधपुर के आर्थिक सौजन्य से जिज्ञासु स्वाध्यायियो को अर्द्ध मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है।

स्वाध्यायियो की ज्ञान वृद्धि हेतु विशिष्ट द्वैमासिक पत्रिका स्वाध्याय शिक्षा का प्रकाशन कराना तथा समस्त स्वाध्यायियो को स्वाध्याय शिक्षा पत्रिका निःशुल्क योजना भी स्वाध्याय संघ की प्रमुख प्रवर्तियों है।

प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ स्वाध्यायी को सम्मानित करने हेतु विशिष्ट स्वाध्यायी सम्मान समारोह आयोजित करना भी स्वाध्याय संघ की एक प्रवर्तियों है। वर्ष 1984 से यह समारोह निरंतर हो रहा है। अभी तक इस सम्मान के अंतर्गत 33 स्वाध्यायी सम्मानित हो चुके है। प्रतिवर्ष वरिष्ठ महिला एवं युवाए इन 3 विशिष्ट स्वाध्यायियो का इस योजना के अन्तर्गत सम्मान किया जाता है।

स्वाध्याय संघ वह इन्द्रधनुषी छटा है जो अपने विभिन्न रंग-बिरंगे कार्यो से सबकी आस्था का केंद्र बना हुआ है। लक्ष्य कितने ही महान् क्यों न हो, योजनाएँ कितनी ही अच्छी क्यों न हो, उनकी सफलता उनके क्रियान्वित करने वाले अनुभवी, समर्पित, योग्य, निष्ठावान एवं कर्तव्यपरायण कार्यकर्ताओं पर निर्भर करती है। यदि आपको प्रतिक्रमण कण्ठस्थ है अथवा आपकी वक्तृत्व कला, गायन कला अच्छी है अथवा आप एक कुशल प्रशिक्षक है तो आप अवश्य स्वाध्यायी बनकर अपनी महती सेवाएं संघ को प्रदान कर सकते हैं। पर्युषण पर्व में बाहर क्षेत्रों में पधारकर पर्वाराधना का कार्यक्रम सुचारू रूप से चलाने में आप सहयोग कर सकते है। नये स्वाध्यायी के रूप में कुछ वर्षों तक आपको सहयोगी के रूप में वरिष्ठ स्वाध्यायियों के साथ भेजा जायेगा, जिससे आपकी प्रतिभा और निखरेगी एवं आप भी वरिष्ठ स्वाध्यायी बन सकेंगे।

स्वाध्यायी आमंत्रित कैसे करें देश-

विदेश में जहाँ कहीं आपके परिजन रहते हैं और यदि वहाँ 10 से अधिक जैन परिवारों की संख्या है तथा साधु-संतों का चातुर्मास न हो तो उन्हें स्वाध्यायी आमंत्रित कर पर्युषण में धर्म-ध्यान कराने की प्रेरणा दें। यदि आप प्रेरणा देने की स्थिति में न हो तो ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले अपने परिजनों का नाम, पता, फोन नं. एवं सम्पर्क सूत्र स्वाध्याय संघ के केंद्रीय कार्यालय में भिजवाये ताकि उन क्षेत्रों के स्वाध्याय संघ की गतिविधियों से परिचय करा स्वाध्यायी आमन्त्रित करने हेतु प्रेरित किया जा सके। आपको क्षेत्र में चातुर्मास न हो तो स्वाध्यायी आमन्त्रित कर संघ की सेवा का सुअवसर प्रदान करावें।

मुख्य कार्यालय
श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ सामायिक स्वाध्याय भवन
प्लाट नं. 2, नेहरू पार्क, जोधपुर – 342003
TEL: 0291-2624891
Mobile No.: 9414126279
Email: swadhyaysanghjodhpur@gmail.com

Bank Details
A/c Name : S.S. Jain Swadhyay Sangh
A/c No. : 00592010003010
IFSC Code : PUNB0005910
Bank name : Punjab National Bank
Branch : Sojati Gate, Jodhpur(Raj.)

  • जहां भी कम से कम 10 जैन परिवार है और चातुर्मास से वंचित रहते हैं उन क्षेत्रों को स्वाध्यायी आमंत्रित करने हेतु प्रेरित करना।
  • स्वाध्यायियों को पर्युषण में सेवा देने हेतु प्रेरित करना।
  • पुराने स्वाध्यायियों के ज्ञान वृद्धि की समीक्षा करना।
  • नये स्वाध्यायी तैयार करना।
  • सामूहिक प्रार्थना, सामायिक, स्वाध्याय करने की प्रेरणा करना।
  • केन्द्रीय, क्षेत्रीय एवं स्थानीय शिविरों का निर्धारण करना।
  • स्वाध्यायी शिक्षक तैयार करना।
  • शाकाहार, व्यसनमुक्ति एवं अहिंसक जीवन शैली का प्रचार-प्रसार करना।
  • संघ एवं संघ की सहयोगी संस्थाओं की गतिविधियों में सहयोग प्रदान करना।

श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर के वर्तमान में 1100 सक्रिय स्वाध्यायी है।

अभी तक संघ की 10 शाखाएं संचालित है-

पोरवाल, पल्लीवाल, मेवाड़, महाराष्ट्र, जयपुर, विदर्भ, तमिलनाडू, मारवाड़, गुजरात एवं मुम्बई।

स्वाध्यायियों के ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि हो, इस हेतु संघ प्रयासरत है। भारतवर्ष के लगभग सभी राज्यों में पर्युषण पर्वाराधना हेतु स्वाध्यायी पहुंचे इस हेतु भी संघ द्वारा प्रचार-प्रसार के माध्यम से प्रयासरत है।

स्वाध्याय संघ में स्वाध्यायी के रूप में सेवा देने हेतु अग्रांकित नियम पालन करना आवश्यक है-

  • पर्युषण पर्व में यथाशक्य बाहर सेवा दूंगा।
  • सप्त कुव्यसनों का सेवन नहीं करूंगा।
  • कम से कम सप्ताह में एक बार सामूहिक सामायिक में भाग लूंगा।
  • मैं प्रतिदिन 20 मिनट स्वाध्याय करूंगा।
  • समय पर स्वाध्याय संघ द्धारा निर्देशित सभी निर्देशों का पालन करूंगा

सन् 1946 संवत् 2002 में प्रारम् हुई स्वाध्यायी-प्रवतियों के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में पांच स्थानों पर स्वाध्यायियों को प्रथम वर्ष में भेजा गया

सन् 1947 से 1959 संवत् 2002 से 2015 तक यह प्रवतियों शैशवावस्था में चलती रही, किन्तु इसका व्यवस्थित विकास संवत् 2016 में हुआ।

सन् 1960 से 1969 वि. संवत् 2016 अर्थात् सन् 1960 में आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. के जयपुर चातुर्मास में स्वाध्यायी-प्रवतियों को सुदृढ़ रूप से चलाने के लिये श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ की स्थापना की गई तथा दिवंगत वरिष्ठ साधक श्री सरदारचन्द जी भण्डारी, जोधपुर को उसके संयोजन का कार्य सौपा गया। हर अच्छी प्रवतियों को सुव्यवस्थित संयोजन एवं संचालन में शुरु-शुरु में अनेक कठिनाईयां आती हैं। यहां भी अनेक कठिनाईयां आई, परन्तु भण्डारी साहब ने उन कठिनाईयो का धैर्यपूर्वक सामना किया, तब से स्वाध्याय प्रवर्तियां सुव्यवस्थित चलने लगी।

सन् 1970-1971 इस वर्ष में श्रीमान् पदमचन्द जी मुणोत को संयोजन का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने इस प्रवृत्ति के विकास के लिए कई प्रयास किए।

सन् 1971-1972 श्रीमान् प्रसन्नचन्द जी बाफना ने इस वर्ष में स्वाध्याय संघ को संयोजन का दायित्व कुशलतापूर्वक निर्वहन किया।

सन् 1972 से 1993 सन् 1972 में दिवंगत तत्वज्ञ सुश्रावक श्रीमान् सम्पतराज जी डोसी को संयोजक पद का दायित्व सौंपा गया। डोसी साहब ने सन् 1993 तक अपनी उत्कृष्ट सेवाएं संघ को प्रदान करते हुए स्वाध्याय संघ की इस पुनीत प्रवर्ति को देश-विदेश में प्रसारित किया। आपके संचालन-संयोजन काल में संघ की प्रवर्तियां निरन्तर विकसित हुई। स्वधयायियों की संख्या 70 से बढ़कर 600 हो गयी तथा स्वधयायियों की सेवा चाहने वाले क्षेत्रों की संख्या 20 से बढ़कर 200 तक हो गयी। आपने स्वधयायियों की योग्यता एवं उनके स्तर को बढ़ाने के लिये स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर, प्रचार-प्रसार यात्राएं, पत्राचार पाठ्यक्रम, स्वाध्यायी-परीक्षा आदि अनेक नवीन योजनों को प्रारम् किया, जिससे स्वधयायियों के स्तर, संख्या एवं उनकी योग्यता में आशातीत अभिवर्द्धि हुई। क्षेत्र बढ़े, स्वाध्यायी बढ़े, क्रियान्विति की अनेक नई योजनाएं बनी तथा कार्य का विस्तार होता गया।

परमपूज्य आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी म.सा. के सन् 1986 के पीपाड़शहर के ऐतिहासिक चातुर्मास में स्वाध्याय की प्रवर्तियां के विकास हेतु ‘‘स्वाध्याय-संचालन समिति गठित की गयी, जिसमें संयोजक के अतिरिक्त सचिव पद का  भी सृजन किया गया। उस समय श्रीमान् चंचलमल जी चौरड़िया को इस पद पर नियुक्त किया गया। चौरड़िया जी ने सन् 1986 से 1993 तक बड़ी निष्ठा एवं लगन के साथ तन, मन, धन से स्वाध्याय संघ की गतिविधियों को व्यवस्थित विकास कर स्वाध्याय-प्रवर्तियां को अधिक व्यापक रूप से प्रसारित किया।

सन् 1993 से 2000 सन् 1993 से 2000 तक श्रीमान् नवरतनमल जी डोसी साहब ने अपने अग्रज भ्राता सम्पतराज जी डोसी से प्रेरणा प्राप्त कर उन के सद्प्रयासो को आगे बढ़ाया। उन्होंने प्रचार-प्रसार के माध्यम से, शिविरो के माध्यम से स्वधयायियों की संख्या में अभिवृद्धि के साथ पुराने स्वधयायियों की ज्ञानवृद्धि हेतु प्रयास किए। इनके सह योगी के रूप में सचिव पद पर सन् 1993 से 1997 तक श्री अरूण जी मेहता एवं सन् 1997 से 2000 तक रिखबचन्द जी मेहता ने अपनी सेवाएं प्रदान की।

सन् 2001 से 2003 सन् 2001 से 2003 तक श्राविकारत्न श्रीमती सुशीला जी बोहरा ने संयोजक पद को ग्रहण किया। आचार्य गवन्त श्री हस्तीमल जी म.सा. की दी हुई सीख को ध्यान में रखकर संघ-सेवा में समर्पित बहन जी ने अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में कई प्रचार यात्राएं कर संघ की गतिविधियो को प्रसारित किया। सचिव के रूप में श्री रिखबचन्द जी मेहता ने बहन जी को पूर्ण सहयोग प्रदान किया।

सन् 2004 से 2009 सन् 2004 से 2009 तक अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धत्ति के विशेषज्ञ श्री चंचलमल जी चौरड़िया को संयोजक पद का दायित्व सौपा गया। चौरड़िया जी ने पूर्व में सचिव पद पर  भी कुशलतापूर्वक कार्य किया था अतः संयोजक के रूप में उन्होंने स्वाध्याय संघ की वि भिन्न गतिविधियों को उत्तरोत्तर प्रसारित किया। चौरड़िया जी के साथ में सचिव के रूप में हिन्दी की व्याख्याता श्रीमती मोहनकौर जी जैन ने संघ की गतिविधियो का प्रचार-प्रसार किया। आपने स्वधयायियों की अभिवृद्धि के साथ ही क्षेत्रों की अभिवृद्धि हेतु  भी प्रयास किए, जिससे पर्युषण पर्वाराधना हेतु क्षेत्रों की संख्या लगभग 185 के पास पहुंची।

सन् 2010 से 2012 तक संयोजक के रूप में नवरतन जी डागा एवं श्री राजेश जी भण्डारी को सचिव का गुरुतर दायित्व सौंपा गया। विभिन्न स्थानों पर प्रचार-प्रसार के साथ ही नये स्वाध्यायी बनाने का अभियान चलाया गया और कई नये स्वाध्यायी तैयार किए गए।

सन् 2012 से 2015 सन् 2012 से 2015 तक श्री कुशलचन्द जी गोटेवाला, सवाईमाधोपुर को संयोजक एवं श्री राजेश जी भंडारी को ही सचिव का गुरुतर दायित्व सौंपा गया। इन वर्षों में ‘स्वाध्याय चेतना अभियान’, ‘प्रतिक्रमण चेतना अभियान’, स्वाध्यायी दैनन्दिनी, स्वाध्यायी चेतना अभिवर्द्धन शिविर आदि कई अभियान तथा कार्यक्रम चलाये गये, जिससे स्वाध्यायियों के ज्ञान में अभिवृद्धि हुई।

देश एवं विदेश के उन क्षेत्रों में जहाँ संत व साध्वी वृन्द के चातुर्मास नहीं हो, पर्युषण काल में उन क्षेत्रों में धर्माराधना हेतु अनुवी तथा योग्य स्वधयायियों को  भेजकर पयुर्षण पर्वाराधना सुचारू रूप से करवाना, स्वाध्याय संघ की प्रमुख प्रवर्तिया है। वर्तमान में इस संघ में लगग 1100 स्वाध्यायी हैं। जिनमें से लगभग 425 स्वाध्यायी प्रतिवर्ष पर्यूषण पर्व में अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।

समाज में योग्य एवं अनुभवी स्वाध्यायी तैयार करने के लिए समय समय पर स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर आयोजित करना स्वाध्याय संघ की एक प्रमुख प्रवर्तिया है। ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर उगम साधन है। शिविरों में स्वाध्यायियों को अधिकाधिक ज्ञानार्जन हो सके, अतः इस हेतु प्रयोग भी किए जा रहे हैं। अतः अधिक से अधिक जिज्ञासु  भाई-बहन एवं स्वाध्यायी बन्धु शिविरों में भाग लेकर अपनी ज्ञानवृद्धि करें, ऐसी अपेक्षा है।

प्रत्येक ग्राम व नगर में स्वाध्याय तथा सामायिक का शंखनाद करने एवं आध्यात्मिक जागृति पैदा करने हेतु स्थानीय आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षण शिविरों का (बच्चों एवं बड़ों का) आयोजन करना भी स्वाध्याय संघ की एक प्रवर्तिया है। स्थानीय शिविरों की उपयोगिता स्वतः सिद्ध है, क्योकि इसमें व्यवस्था संबंधी खर्च कोभी संघ व समाज पर नहीं पड़ता है। अतः सभी श्रीसंघ एवं समाज ऐसे शिविरों की उपयोगिता समझकर अपने यहाँ पर स्थानीय शिविर आयोजित करवायें। यदि कोई श्रीसंघ अपने यहाँ पर स्थानीय शिविर आयोजित कराना चाहे तो इस संबंध में स्वाध्याय संघ कार्यालय से सम्पर्क करावें।

श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ जोधपुर द्धारा स्वाध्यायियों से व्यक्तिगत सम्पर्क कर ज्ञानवर्द्धन एवं सदाचरण की प्रेरणा प्रदान करने तथा जनसाधारण को सामायिक-स्वाध्याय प्रवर्तिया से जोड़ने के लिए समये पर प्रचार-प्रसार यात्राओं का आयोजन किया जाता है। ये कार्यक्रम 1987 से निरन्तर चल रहे हैं। प्रचार-प्रसार कार्य क्रमो के अन्तर्गत सेवा देने वाले विशिष्ट स्वाध्यायी साधक एवं मनीषी चिन्तक होते हैं जो समाज में व्याप्त कुरीतियो एवं दुव्र्यसनो के निवारण तथा सामायिक-स्वाध्याय आदि द्वारा ज्ञानवर्द्धन की पुरजोर प्रेरणा प्रदान करते है तथा निरन्तर स्वाध्याय करने, स्वाध्यायी बनने एवं पाठशालाएँ प्रारं करने की प्रेरणा करते हैं।

प्रति वर्ष पर्युषणए प्रशिक्षण शिविरों एवं प्रचार.प्रसार के माध्यम से प्रेरणा कर योग्यए युवा एवं विशिष्ट प्रभावशाली लगभग को नये स्वाध्यायी बनाये जाते हैं जो पर्वाधिराज पर्युषण में अपनी प्रभावी सेवा द्धारा युवा पीढ़ी को धर्म से जोड़कर जिनवाणी की भावना करते हैं।

स्वाध्यायियो को अपनी ज्ञान वृद्धि हेतु पर्युषण संबंधी समस्त साहित्य निःशुल्क उपलब्ध कराया जाताहै। पर्युषण के अतिरिक्त अन्य धार्मिक साहित्य भी कोई स्वाध्यायी खरीदना चाहे तो श्री कल्याणमल चंचलमल चौरड़िया ट्रस्ट जोधपुर के आर्थिक सौजन्य से जिज्ञासु स्वाध्यायियो को अर्द्ध मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है।

स्वाध्यायियो की ज्ञान वृद्धि हेतु विशिष्ट द्वैमासिक पत्रिका स्वाध्याय शिक्षा का प्रकाशन कराना तथा समस्त स्वाध्यायियो को स्वाध्याय शिक्षा पत्रिका निःशुल्क योजना भी स्वाध्याय संघ की प्रमुख प्रवर्तियों है।

प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ स्वाध्यायी को सम्मानित करने हेतु विशिष्ट स्वाध्यायी सम्मान समारोह आयोजित करना भी स्वाध्याय संघ की एक प्रवर्तियों है। वर्ष 1984 से यह समारोह निरंतर हो रहा है। अभी तक इस सम्मान के अंतर्गत 33 स्वाध्यायी सम्मानित हो चुके है। प्रतिवर्ष वरिष्ठ महिला एवं युवाए इन 3 विशिष्ट स्वाध्यायियो का इस योजना के अन्तर्गत सम्मान किया जाता है।

जनवरीआचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी म.सा. के जन्म-दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्वाध्यायी संगोष्ठियों का आयोजन
फरवरीविभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक प्रचार-प्रसार कार्यक्रम
मार्चविभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक प्रचार-प्रसार कार्यक्रम
अप्रेलविभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक प्रचार-प्रसार कार्यक्रम
मई1- विभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक प्रचार-प्रसार कार्यक्रम 2- स्वाध्यायी गुणवत्ता अभिवर्द्धन शिविर
जूनविभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक प्रचार-प्रसार कार्यक्रम
जुलाई1- विभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक प्रचार-प्रसार कार्यक्रम 2- पर्युषण हेतु मांग एकत्रित करने के प्रयास
अगस्तस्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर
सितम्बरपर्युषण पर्वाराधना की व्यवस्था
अक्टूबरस्वाध्यायी प्रशिक्षण शिविर
नवम्बर 
दिसम्बरस्वाध्यायी शिक्षक निर्माण शिविर

स्वाध्याय संघ वह इन्द्रधनुषी छटा है जो अपने विभिन्न रंग-बिरंगे कार्यो से सबकी आस्था का केंद्र बना हुआ है। लक्ष्य कितने ही महान् क्यों न हो, योजनाएँ कितनी ही अच्छी क्यों न हो, उनकी सफलता उनके क्रियान्वित करने वाले अनुभवी, समर्पित, योग्य, निष्ठावान एवं कर्तव्यपरायण कार्यकर्ताओं पर निर्भर करती है। यदि आपको प्रतिक्रमण कण्ठस्थ है अथवा आपकी वक्तृत्व कला, गायन कला अच्छी है अथवा आप एक कुशल प्रशिक्षक है तो आप अवश्य स्वाध्यायी बनकर अपनी महती सेवाएं संघ को प्रदान कर सकते हैं। पर्युषण पर्व में बाहर क्षेत्रों में पधारकर पर्वाराधना का कार्यक्रम सुचारू रूप से चलाने में आप सहयोग कर सकते है। नये स्वाध्यायी के रूप में कुछ वर्षों तक आपको सहयोगी के रूप में वरिष्ठ स्वाध्यायियों के साथ भेजा जायेगा, जिससे आपकी प्रतिभा और निखरेगी एवं आप भी वरिष्ठ स्वाध्यायी बन सकेंगे।

स्वाध्यायी आमंत्रित कैसे करें देश-

विदेश में जहाँ कहीं आपके परिजन रहते हैं और यदि वहाँ 10 से अधिक जैन परिवारों की संख्या है तथा साधु-संतों का चातुर्मास न हो तो उन्हें स्वाध्यायी आमंत्रित कर पर्युषण में धर्म-ध्यान कराने की प्रेरणा दें। यदि आप प्रेरणा देने की स्थिति में न हो तो ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले अपने परिजनों का नाम, पता, फोन नं. एवं सम्पर्क सूत्र स्वाध्याय संघ के केंद्रीय कार्यालय में भिजवाये ताकि उन क्षेत्रों के स्वाध्याय संघ की गतिविधियों से परिचय करा स्वाध्यायी आमन्त्रित करने हेतु प्रेरित किया जा सके। आपको क्षेत्र में चातुर्मास न हो तो स्वाध्यायी आमन्त्रित कर संघ की सेवा का सुअवसर प्रदान करावें।

मुख्य कार्यालय
श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ सामायिक स्वाध्याय भवन
प्लाट नं. 2, नेहरू पार्क, जोधपुर – 342003
TEL: 0291-2624891
Mobile No.: 9414126279
Email: swadhyaysanghjodhpur@gmail.com

Bank Details
A/c Name : S.S. Jain Swadhyay Sangh
A/c No. : 00592010003010
IFSC Code : PUNB0005910
Bank name : Punjab National Bank
Branch : Sojati Gate, Jodhpur(Raj.)

केन्द्रीय - पदाधिकारी

संयोजक

श्री

सहसंयोजक

श्री

सचिव

श्री

कोषाध्यक्ष

श्री

निदेशक

श्रीमती मंगला जी चोरडिया - जलगाव

संयोजक

श्री प्रकाश जी सोलेचा - जोधपुर

सचिव

श्री अशोक जी जैन - जोधपुर

कोषाध्यक्ष

श्री गौतम जी जीरावला-जोधपुर

संयोजक

श्री

सहसंयोजक

श्री

सचिव

श्री

कोषाध्यक्ष

श्री

संयोजक

श्री सुभाष जी हुण्डीवाल

सह संयोजक

श्रीमती मंगला जी चोरडिया

सह सचिव

श्री जिनेन्द्र जी जैन

सह संयोजक

श्री पदम जी गोटेवाला

कोषाध्यक्ष

श्री चंचल मल जी गिड़िया

सचिव

श्री सुनील जी संकलेचा

निदेशक

श्री चंचलमल जी चोरडिया

संयोजक

श्री सुभाष जी हुण्डीवाल

सह संयोजक

श्रीमती मंगला जी चोरडिया

सह संयोजक

श्री पदम जी गोटेवाला

कोषाध्यक्ष

श्री चंचल मल जी गिड़िया

सचिव

श्री सुनील जी संकलेचा

सह सचिव

श्री जिनेन्द्र जी जैन

निदेशक

श्री जगदिशमल जी कुम्भट

संयोजक

श्री ओमप्रकाश जी बांठिया

सह संयोजक

श्रीमती मंगला जी चोरडिया

सचिव

श्री गोपाल जी अबानी

कोषाध्यक्ष

श्री लोकेन्द्र नाथ जी मोदी

निदेशक

श्री राजेन्द्र जी लुंकड

संयोजक

श्री कुशलचंद जी गोटेवाला

सह संयोजक

श्री राजेंद्र जी कुंभट

सचिव

श्री राजेश जी भंडारी

संयोजक

श्री नवरतन जी डागा

सचिव

श्री राजेश जी भंडारी

संयोजक

श्री चंचलमल जी चोरडिया

सचिव

श्रीमति मोहनकौर जी जैन

संयोजक

श्री चंचलमल जी चोरडिया

सचिव

श्रीमति मोहनकौर जी जैन

संयोजक

श्रीमति सुशीला जी बोहरा

सचिव

श्री रिखबचंद जी मेहता

संयोजक

श्री नवरतनमल जी डोसी

सचिव

श्री रिखबचंद जी मेहता

संयोजक

श्री नवरतनमल जी डोसी

सचिव

श्री अरुण जी मेहता

संयोजक

श्री सम्पतराज जी डोसी

सचिव

श्री चंचलमल जी चोरडिया

संयोजक (1986-1972)

श्री सम्पतराज जी डोसी

संयोजक (1971-1972)

श्री प्रसन्नचंद जी बाफना

संयोजक (1970-1971)

श्री पदमचंद जी मुणोत

संयोजक (1960-1970)

श्री सरदारचंद जी भंडारी

ई-संदेश भेजे