रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-09 (Supatradaan Vivek-09)

ऊपर जो आहार-पानी लेने का निषेध किया गया है उसका यह कारण है इस प्रकार से बालक के अंतराय लगती है तथा भूमि आदि पर अलग रखने से साधु के गोचरी हेतु घर में प्रवेश करने पर यदि बच्चा रो रहा हो तो साधु आहार-पानी ग्रहण नहीं करे बच्चे के रोने के कारण या तो जिस वस्तु का आहार दिया जा रहा है उस वस्तु को लेना चाह रहा है या फिर माता की गोदी के लिए रो रहा है अथवा साधु से परिचित होने से डरकर रो रहा है जब तक माता उस बच्चे को वस्तु आदि देकर संतुष्ट नहीं करती अर्थात् उस बच्चे का रोना बंद नहीं होता तब तक या स्थिति में साधु वहाँ से अथवा उस बहन से आहार ग्रहण नहीं करे।

अतः इसमें श्रावक को पूर्ण विवेक का परिचय देना चाहिये साथ ही प्रसंग इससे हमें ये देखने को मिलता है कि साधु की तृप्ति कितनी महान् वृत्ति है जिससे वह किसी भी जीव की विराधना तो दूर उसके मन को भी ठेस पहुँचाना नहीं चाहता है।

श्रावक बालक की सहमति बनाकर आहार देने का पूरा ध्यान रखावें।