भिक्षाके 42 दोषों में से 16 उद्गम के, 16 उत्पादन के और 10 एषणा के दोष बताए गये हैं, भिक्षा देते समय गृहस्थ द्वारा लगने वाले दोषों को उद्गम दोष कहते हैं। साधु के द्वारा लगने वाले दोषों को उत्पादन के दोष कहते हैं। साधु तथा श्रावक दोनों के द्वारा लगाने वाले दोषों को एषणा कहते हैं। 5 समिति 3 गुप्ति में संयम मर्यादा का पालन करते हुए एवं संयम जीवन सुरक्षित कैसे रखा जाए इसके लिए 16 उद्गम के दोषों में से एक दोष बताया मालीहड़े-सीढ़ी, निसरणी आदि लगाकर ऊँचे, तिरछे आदि स्थानसे जिससे अयतना होवे वहाँ से वस्तु निकाल कर देवे तो मालापहृत दोष बताया है।
इसी संदर्भ में दशवैकालिक सूत्र 5वें अध्ययन 1 उद्दे. 67 गाथा में बताया गया है-
निस्सेणि फलगं पीढं, उस्सवित्ताणमारुहे।
मंचं कीलंच पासायं, समणट्ठाए व दावए।।67।।
इस सूत्र में इस बात का कथनहै कि जब साधु भिक्षार्थ गृहस्थ के घर पर जाए तब कोई गृहस्थ निसरणी, सीढ़ी आदि वस्तुओं की गई। ऊँची करके, खड़ी करके, प्रासाद पर चढ़कर आहारादि नहीं देवे। निसरणी (सीढ़ी) आदि से (आरोहण) की क्रिया करने से एक तो कष्ट होता है। दूसरे अस्थिरता के कारण ऊपर चढ़ने के कारण दाता के गिर जाने से हाथ-पैर आदि अंगों में लग जाने की संभावना रहती है। तीसरे-गिरने से सचित पृथ्वी के जीवों की और पृथ्वी के आसित त्रस जीवों की हिंसा की भी निश्चित आशंका रहती है, क्योंकि जिस समय मनुष्य कहीं गिरता है तो वह अपने वश में नहीं रहता। वह बिल्कुल परवश हो जाता है फिर संभल जाने की शक्ति नहीं रहती। गिरने पर चाहे खुद की किसी प्रकार का कष्ट हो चाहे वहाँ पर रहे हुए प्राणी को कष्ट हो, कष्ट की आशंका अवश्य रहती है। इस प्रकार जो पूर्ण संयम के धारक महर्षि है वे इस प्रकार मालापहृत आहार पानी ग्रहण नहीं करते हैं। कभी ऐसा संभव है कि उतारने का कार्य गृहस्थ समर्थ है, पर कभी संशय निवारण हेतु साधु भगवन्त द्वारा बहुत पृच्छा की जाती है तो गृहस्थ की श्रद्धा, आदर-भाव में न्यूनता आने की संभावना बन जाती है। इसलिये भी साधु भगवन्त ऐसी स्थिति को टाल जाते हैं।
कभी ऊपर टांड (डहशश्रष) अलमारी पर रखी चीज के आस-पास विषैले जीव की भी आशंका हो सकती है। अयतना संभव है। अतः भावना भाने वाले श्रमणोपासक को बड़े विवेक से वस्तु समयोचित जगह पर रखनी चाहिये। जिससे मिले सुपात्रदान के अनमोल अवसर का लाभ लिया जा सके। श्रावक बहुत विवेकवान हो तो गीतार्थ साधु समायोचित निर्णय ले सकते है।