भारतीय सम्यता में भी जैनों ने अहिंसा पर अधिक बल दिया है मानव एवं बड़े-बड़े जीव-जन्तुओं का ही नहीं, छोटे से छोटे प्राणियों के प्राणों की सुरक्षा करने का भी ध्यान रखा है। विश्व के सभी जीवों के साथ दया एवं अहिंसा का व्यवहार करने के कारण ही वे विश्वबन्धुत्व वात्सल्य की भावना को अपने जीवन में साकार रुप दे सके है।
साधु को आहार आदि ग्रहण करते समय ग्राह्य वस्तु की एषणीय-अगेषणीयता के साथ दाता की योग्यता-अयोग्यता का भी विचार करना चाहिए। शास्त्रकारों ने गर्भिणी स्त्री, नासमझ, बालक, अंधा, लुला, लंगड़ा आदि से गोचरी लेने का निषेध किया है कारण? उनके द्वारा गोचरी दिये जाने पर पूरी यतना सम्भव नहीं हो पाती कभी आहार के गिरने की या उनके स्वयं के गिरने की संभावना हो सकती है जिससे संयम विराधना, जीव विराधना या आत्म-विराधना के साथ उनको शारीरिक पीड़ा का भी सामना करना पड़ सकता है अतः भगवान ने उनसे आहार लेने में विवेक रखने को कहा है।
क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को सामग्री जुटाने इत्यादि में भी बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। संतों को देख संकोच में एक बार बहरा देवे बाद में मन में कहीं खिन्नता रह जावे तो जिनशासन की अवहेलना होती है। इस हेतु भगवान ने विवेक लेने की आज्ञा दी है।
साधु भगवन्तों को लगे कि दाता की भावना प्रबल है एवं आहारादि गिरने की संभावना नहीं है और भिक्षा लेने से दाता को कोई अंतराय जैसी बात नहीं होगी तो वे विवेकपूर्ण समयोचित निर्णय ले सकते हैं।