रत्नसंघ

Menu Close
Menu Close

अभिगम अर्थात् भगवान् के समवसरण में या साधु-साध्वी के उपाश्रय (स्थानक) में जाते समय पालने योग्य नियम। ये अभिगम पाँच है:-

सचित्त त्याग अचित्त रख, उत्तरासंग कर जोड़। कर एकाग्र चित्त को, सब झंझटों को छोड़।।

1. सचित्त का त्याग– देव, गुरु के समीप जाते समय इलायची, बीज सहित मुनक्का (बड़ी दाख), छिलके सहित बादाम, पान, फल, फूल, बीज, अनाज, हरी दातौन, सब्जी आदि सचित्त वनस्पति, कच्चा पानी, नमक, लालटेन, चालू टार्ज, सेल की घड़ी, मोबाइल फोन आदि साथ नहीं ले जाना।

2. अचित्त का विवेक- अभिगम सूचक वस्तुएँ जैसे छत्र, चामर, जूते, लाठी, वाहन, शस्त्र आदि एक तरफ रखकर एवं वस्त्र व्यवस्थित कर देव-गुरु को वंदना करना। भाईयों को सामायिक के लिए महासतीजी व बहिनों के सामने वस्त्र नहीं बदलना चाहिये, किन्तु एक तरफ जाकर वस्त्र बदलना चाहिए।

3. उत्तरासंग धारण- मुँहपत्ति या रूमाल मुँह के ऊपर रखना। देव, गुरु के समक्ष खुले मुँह से नहीं बोलना।

4. अंजलिकरण- जोड़े हुए दोनों हाथ ललाट से लगाकर विनय पूर्वक वंदना करना।

5. मन की एकाग्रता- गृहकार्य के प्रपंच या पापकार्यों से मन हटाकर देव-गुरु जो फरमाते हैं, उसे एकाग्रता पूर्वक सुनना।