रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-32 (Supatradaan Vivek-32)

साधु महाव्रतों से संयम रुपी यात्रा का निर्बाध पालन करने वाला होता है। पाँच महाव्रतों में चतुर्थ महाव्रत ब्रह्मचर्य का पालन है। उस ब्रह्मचर्य को शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ तप बताया गया है। उस ब्रह्मचर्य रुपी अनमोल रत्न की सुरक्षा हेतु नववाड बताई गई है। नववाड के अन्तर्गत ही रुपक रुप में बताया गया है कि वेश्या आदि के मौहल्ले में से साधु नहीं निकले। इसी संदर्भ में दशवैकालिक सूत्र के 5वें अध्ययन की 9वीं गाथा में बताया गया है कि-

ण चरेज्ज वेससामंते, बंभचेरवसाणुए।
बंभयारिस्स दंतस्स, हुज्जा तत्थ विसुत्तिया।। 9 ।।

प्रस्तुत गाथा में साधु, ब्रह्मचर्य का नाश करने वाली वेश्या के समीप के स्थानों में न जाए क्योंकि वहाँ पर जाने से इन्द्रियों का दमन करने वाले ब्रह्मचारी को वहाँ पर संयम रुपी धान्य को सुखाने वाला मनोविकार उत्पन्न हो जाता है।
यहाँ पर यह भी नियम नहीं है कि वेश्याओं के मौहल्ले में होकर निकल जाने से उनके मौहल्ले में जाने से ब्रह्मचर्य का नाश नियम से ही हो जाए। कभी-कभी ब्रह्मचर्य का नाश वहाँ पर जाने से या दूर होकर निकल जाने से नहीं भी होता है। लेकिन संयोगवश तीव्र कर्मोदय से कभी किसी साधु के साथ इस प्रकार की अनर्थकारी घटना घटी है।
सभी साधु स्थूलिभद्र जैसे नहीं उन महापुरुष ने भी वेश्या के महल में रहकर वेश्या जैसी नारी को भी सच्ची व्रतधारी श्राविका बना दिया। लेकिन वर्तमान परिवेश में रहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना असंभव है।
उसका यह मतलब है कि शास्त्रकार उस संसर्ग का भी सर्वथा निषेध किया है जिससे संयम के बिगड़ जाने कमी संभावना मात्र हो, पवित्र चारित्र में संशय उत्पन्न हो जाएगा। जिसका परिणाम यह निकलेगा कि वह ब्रह्मचर्य से भ्रष्ट हो जाएगा। एक ब्रह्मचर्य में दोष लगने पर छःव्रतों का भंग होता है जैसे-अनुपयोग (उपयोग पूर्वक नहीं) चलने पर अहिंसा व्रत भंग होता है, पूछने पर असत्य बोला कि मैं वहाँ पर नहीं गया, तो दूसरे महाव्रत का भंग, वहाँ पर जाने की भगवान की आज्ञा नहीं है और गया तो तीसरा महाव्रत भंग और ब्रह्मचर्य-व्रत का भंग तो है ही, साथ ही पुनःपुनः गमन करने से ममत्व भाव बढ़ जाने के कारण पंचम महाव्रत का भंग और रात्रि भोजन की अभिलाषा हो जाने से छठे व्रत का भी भंग हो सकता है।
इस प्रकार पुनःपुनः उस स्थान पर जाने से छहों व्रतों का भंग हो सकता है और साथ ही साथ में संयम जीवन में संशय, अश्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाएगा।
इसलिए जैन साधु को वैश्या के मौहल्ले में भूलकर भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि वैश्या के मौहल्ले में जाने से ब्रह्मचर्य खंडित होने की संभावना रहती है और लोगों के मन में शंका उत्पन्न हो जाती है कि ये जैन साधु वैश्या के मौहल्ले में क्यों आये? श्रावकों को यह विवेक रखना चाहिये कि साधु भगवन्तों को विहार में चाहे थोड़ा मार्ग ज्यादा लग जावे तो भी ऐसे मौहल्लों की तरफ का मार्ग न बतावें।