रत्नसंघ

Menu Close
Menu Close

पाँच अभिगम

अभिगम अर्थात् भगवान् के समवसरण में या साधु-साध्वी के उपाश्रय (स्थानक) में जाते समय पालने योग्य नियम। ये अभिगम पाँच है:- सचित्त त्याग अचित्त रख, उत्तरासंग कर जोड़। कर एकाग्र चित्त को, सब झंझटों को छोड़।। 1. सचित्त का त्याग– देव, गुरु के समीप जाते समय इलायची, बीज सहित मुनक्का (बड़ी दाख), छिलके सहित बादाम, पान, फल, फूल, […]

जैन धर्म में रत्न संघ एवं परम्परा का परिचय

जैन धर्म में रत्नवंश एवं परम्परा का परिचय कालचक्र (20 कोटाकोटि सागरोपम) जैन धर्म अनादि है, सनातन है, शास्वत है। शास्त्रीत मान्यानतानुसार कालचक्रम में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दो कालचक्र हैं, जिन्हें वृद्धिमान और हीयमान नाम से भी कह सकते हैं। गणना की दृष्टि से दस कोटा कोटि सागरोपम कह जाने वाले दोनों कालचक्र बीस कोटा कोटि सागरोपम हैं। लोक में असंख्य द्वीप व असंख्य समुद्र […]

स्थानकवासी परम्परा और उसकी मौलिक मान्यताएँ

भगवान महावीर की विशुद्ध परम्परा निग्र्रन्थ, श्रमण, सुविहित आदि विविध रूपों का पार करती हुई समय के प्रभाव से स्थानकवासी के नाम से पुकारी जाने लगी। ‘स्थानक’ शब्द का अर्थ बहुतव्यापक और उत्कृष्ट उद्देश्यों का द्योतक रहा है। यह पौषध, संवर, समायिक आदि धार्मिक क्रियाओं को सम्पन्न करने का स्थान है। छः काय के जीवों […]