रत्नसंघ

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डांडिया (DANDIYA)

पौषध, संवर, दयाव्रत, सामायिक-प्रतिक्रमण आदि करते समय रात्रि में लघुशंका करने जाने, गुरुदेवों के सान्निध्य में रात्रि में दर्शन-वन्दन, स्वाध्याय, तत्त्व चर्चा आदि हेतु जाते-आते समय पूँजकर चलना आवश्यक होता है, अन्यथा अनेकानेक जीवों की विराधना का दोष लग जाता है। पौषध आदि में रात्रि में पूँजकर आवश्यक गमनागमन करने के लिए डांडिया होना प्रत्येक श्रावक-श्राविका के लिए आवश्यक है।

डांडिया भी पूँजनी की तरह होता है, अन्तर इतना है कि इसमें सफेद ऊन की फलियाँ 200 के लगभग होती है तथा डण्डी की लम्बाई लगभग 2.5 फीट होती है। साधु-साध्वियों के लिए रजोहरण (ओघा) होता है, और श्रावक-श्राविकाओं के लिए डांडिया होता है। इन दोनों में मुख्य अन्तर यह है कि साधु-साध्वियों के डण्डी पूरी तरह वस्त्र से ढँकी रहती है, जबकि डांडिये में डण्डी बिना वस्त्र के होती है।