रत्नसंघ

Menu Close
Menu Close

सुपात्रदान विवेक-03 (Supatradaan Vivek-03)

संयम पालन के लिए प्राणों को कितनी बड़ी आवश्यकता है यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। प्राणों की रक्षा आहार से होती है। अतः संयमी का कर्त्तव्य है कि, शुद्ध संयम पालन के लिए शुद्ध आहार की ही गवैषणा करे दुषित आहार की कदापि इच्छा न करे। परंतु गवेषणा के साथ बात और है, वह यह है कि, चित्त में किसी प्रकार की दीनता के भाव न लाए, क्योंकि दीनता के आ जाने से शुद्ध आहार की गवेषणा नहीं हो सकती और फिर जिस प्रकार का मिले उसी से बस पेट भरने की पड़ जाती है।

असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। तेउम्मि होज्ज निक्खित्तं, तं च संघट्टिया दए ।। 61 ।।

तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकल्पियं। दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पइ तारिसं।। 62 ।।
एवं उस्सक्किया ओसक्किया, उज्जालिया पज्जालिया निव्वाविया।

उस्सिंचिता निस्सिचिया, उवत्तिया ओयरिया दए ।। 63 ।।

यदि अशन, पानी, खाद्य, स्वाद्य चतुर्विध आहार अग्नि पर रखा हुआ हो अथवा दातार अग्नि से संघट्ठा करके देवे तो साधु को यह पदार्थ नहीं लेना चाहिए। जैन शास्त्रकारों का अटल सिद्धान्त है कि-अग्नि सचित्त है सजीव है। असणं-अशन अर्थात् अन्न विकृति आदि पाणं-पान अर्थात् पानी, खाइमं-खाद्य अर्थात् फल मेवा मिठाई आदि, स्वादिम-लौंग, सुपारी, सौंफ, चूर्ण गोली आदि पदार्थ।

पुराने जमाने में मिट्टी के स्थिर चूल्हे होते थें, वर्तमान में भी ग्रामों में अभी भी स्थिर चूल्हें मिलते हैं। अगर उस चूल्हे पर दूध आदि कोई भी पदार्थ रखे हो तो और चूल्हे में मामूली सी आँच है तो वहाँ से ले सकते हैं वहाँ पर अग्निकाय की विराधना नहीं होती है। आज वर्तमान में गैस, लोहे के चूल्हे या और कोई जो स्थिर नहीं हैं वहाँ पर अग्निकाय की विराधना नहीं होती है। आज वर्तमान में गैस, लोहे के चूल्हे या और कोई जो स्थिर नहीं है अगर ऐसे आने की जानकारी होने के साथ में इलैक्ट्रिक आदि पदार्थ की जहाँ अग्निकाय जीवों की विराधना नहीं हो अर्थात् उन्हें बंद करके न दे। अग्नि की विराधना स्विच ऑन और स्विच ऑफ दोनों ही परिस्थितियों में होती है।

साधु छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पाशील होते हैं। अक्सर गैस, चूल्हे इत्यादि से संघट्ठा होता है तो अग्निकाय की विराधनपा संभव है। ऐसे में श्रमणोपासक-श्रमणोपासिका इस बात का विवेक रखे कि बहराते वक्त कोई भी जीव चाहे-स्थावर, अग्निकाय की भी विराधना नहीं होनी चाहिये। थोड़े से अविवेक में यह अनमोल सुपात्रदान का अवसर हाथ से चला जाता है।