रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-04 (Supatradaan Vivek-04)

आजकल प्रायः सभी के घर फ्लैटों में या कॉलोनियों में होने से चोरी आदि के डर से घरों के दरवाजे अंदर से बंद रखते हैं आगन्तुक के द्वारा डोर बोल या घंटी बजाने पर ही गेट खोला जाता है।

साधु गोचरी के लिए जाते हैं तो उस समय गृहस्थों को अपने घर के दरवाजे खुले रखकर भावना भानी चाहिये जिससे उनकी भावना फलीभूत हो सकें यदि दरवाजा बंद होते हैं तो साथ में चलने वालों के द्वारा घंटी नहीं बजानी चाहिये। घंटी बजाने से तेउकाय के असंख्यात जीवों की विराधना होती है। अतः घर के असुझते होने पर श्रावक आहार दान से भी वंछित हो सकता है। जीव विराधना के अन्य साधन भी इसके लिए प्रयुक्त नहीं करने चाहिये। घंटी आदि के स्थान पर दरवाजा खट-खटाकर गृहस्थ को चेताया जा सकता दे। यदि उस समय गृहस्थ सावद्य क्रिया में जुड़ा हुआ हो तो श्रावक अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत करा दे। जिससे साधु अपना अचित्त विवेक पूर्ण निर्णय ले सके।

श्रावक को यह विवेक रखना चाहिये कि वह घंटी कभी न बजाए ना ही साधु भगवन्त के प्रवेश के समय तेज आवाज से घर वालों को सूचित करे। इससे कभी शंका हो जावे तो साधु भगवन्त वापस चले जाते हैं। ऐसा विवेक उन्हें रखना चाहिये कि ऐसे करने का (बेल से सूचित इत्यादि) भाव ही मन में न आये। उसकी जीवनचर्या इतनी सहज होनी चाहिये कि संत भगवन्त जब भी आये तब प्रासुक एषणीय आहार उपलब्ध हो।

प्रथम चार स्थावरों में भगवान ने असंख्यात जीव बताये हैं इन जीवों की बिना कारण विराधना न हो इसके लिये गृहस्थ श्रावक जागरुक रहता है कारण के होने पर भी यदि स्थावर काय का समारंभ किया जाता है तो पाप का सेवन होता है यदि कभी गृहस्थ बिजली आदि के माध्यम से तेउकाय की विराधना कर रहा हो उसी समय यदि कोई संत-सती का गोचरी आदि के लिए आगमन हो जाये तो उसके हाथ से वे गोचरी ग्रहण नहीं करते घर असुझता हो जाता है। उस घर से बिना आहार-पानी लिये ही संत-सती लौट जाते हैं अतः श्रावक-श्राविकाओं को विवेक रखना चाहिये कि संत-सती के पधारने पर किसी प्रकार का स्विच ऑन-ऑफ नहीं करना चाहिये।