रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-06 (Supatradaan Vivek-06)

अहुणोवलित्तं उल्लं, दहूणं परिवज्जए।

जहाँ कहीं भी लिपा गया हो या गीलापन हो, वे सभी स्थान साधु के लिए वर्जनीय है, उक्त स्थानों पर जाने से साधु के लिए इसलिये निषेध है कि वहाँ पर गमन करने से साधु से संयम-विराधना होने की संभावना है।

कारण-ऐसे स्थानों पर गीलापन-चिकनापन होने से पैर आदि फिसलने की संभावना रहती है जिससे जीव विराधना के संयम विराधना के साथ शारीरिक पीड़ा भी हो सकती है जिसका निवारण करने के लिए अनेक प्रकार के उपचार आदि करने पड़ सकते हैं और इसी के साथ पोचे आदि लगे हुए ऐसे गीले स्थान पर जाने से वह स्थान गंदा होने की संभावना हो सकती है जिससे गृहस्थ को नाराजगी हो सकती है अथवा उस गंदगी को साफ करने में पुनः आरंभ करना पड़ सकता है।

श्रावक विवेक रखे कि गोचरी के समय फर्श गीली नहीं रखें। नल, पानी इत्यादि खुले हो तो पूर्व में ही विवेक ले लेवे।

वीतराग प्रभु महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। उन्होंने केवलज्ञान से छोटे-छोटे जीवों की पीड़ा को जाना। पानी में त्रस जीव होते हैं और पानी एक बूंद में असंख्यात अप्काय के जीवों की संभावना होती है ऐसे में साधु उस पर भिक्षा के निमित्त छूते भी नहीं है। अचित्त पानी ही ग्रहण करते हैं। अतः विवेकवान श्रज्ञवक पानी के रास्ते में किसी भी निमित्त बिखेरे नहीं और नहीं और पूर्व में पानी फैला है तो भी साफ कर दें जिससे सुपात्रदान का लाभ ले सकें।