रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-17 (Supatradaan Vivek-17)

जिस स्थान पर अथवा जहाँ कही भी फूल और बीज बिखरे हुए हो, पक्षी आदि को (चुग्गा) दाना-पानी आदि दिया जाता हो जहाँ (किडी नगरा) चींटियों आदि को अन्न दिया जाता हो। गाय-भैंस चारा चर रही हो ऐसे स्थानों पर जाने से संयम की विराधना व आत्म विराधना होने की संभावना हो सकती है। साथ ही उन जीवों को आहार में (अंतराय) बाधा भी उत्पन्न हो सकती है अतः इससे जिनशासन की, धर्म की साधु की लघुता भी प्रकट होती है इसलिए ऐसे स्थानों पर होकर साधु गृहस्थ के यहाँ गोचरी के लिए कदापि नहीं जाए। प्रायः कई लोग अपने घर के आंगन में ही चुग्गा आदि डालने का कार्य करते हैं जिससे साधु-साध्वी को विराधना होने की संभावना के कारण घर में प्रवेश करना संभव नहीं हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में श्रावक सुपात्रदान से भी वंचित रह सकता है अतः चुग्गा आदि ऐसे स्थानों पर डालना चाहिए जहाँ न तो किसी प्रकार का आगमन हो न ही किसी बिल्ली, कुत्ते आदि का हिंसक प्राणियों का भय हो।

अनुकम्पावान श्रावक पशु-पक्षियों की विशाल हृदय से सेवा करें पर विवेक के साथ जिससे छय काय के प्रतिपालकों को आहार बहराने में कोई अंतराय न आ जावे।