रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-29 (Supatradaan Vivek-29)

ऊपर आदि स्थानों पर रखी हुई वस्तुओं को यदि गृहस्थ नीचे लाकर बहरावे तो साधु उसे ग्रहण नहीं करते।

क्योंकि जो वस्तु ऊपर से लाई गयी है हो सकता है वह सचित्त आदि पदार्थों के स्पर्श की हुई हो अथवा लाईट आदि जलाकर के अंधेरे स्थान से निकालकर लायी हुई हो या अन्य किसी दोष का सेवन करके लायी हुई हो इस कारण साधु उसे ग्रहण नहीं करते।

प्रायः ऐसा होता है कि दो-तीन मंजिले घर होते हैं। उसमें रसोईघर नीचे हो पर कभी असनपान इत्यादि ऊपर की मंजिल में हो या फिर कोई वस्त्र पात्र इत्यादि ऊपर की मंजिल में हो तो साधु को संशय हो कि कहीं सचित्त का संस्पर्श हो सकता है तो ऐसे में साधु भगवन्त ऊपर से लाई हुई चीज नहीं लेते हैं। भक्ति हो हमारी पूरी संत भगवन्तों के प्रति पर भावातुर होने में कभी जल्दबाजी में ऊपर से चीज लाने में गिरने इत्यादि का भय एवं अन्य जीवों की विराधना संभव है। साधु भगवन्त बहुत विवेकी एवं धैर्यता वाले होते हैं। एक ही कार्य में गृहस्थ की वृत्ति एवं साधु की वृत्ति में रात-दिन का अंतर होता है। ऐसे में श्रावक विवेक रखे कि साधु भगवंत जहाँ तक है स्वयं ऊपर पधारेंगे और कभी वे भरोसा-विश्वास व्यक्त कर श्रावक पर तो चपलता के साथ या दनादन न जावे अपितु अतिशीघ्रता रहित विवेक से कार्य में परिणित देवे।