सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर
महान् ज्योतिर्धर क्रियाद्धारक जैनाचार्य पूज्य श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की स्वर्गारोहण शताब्दी के पुनीत अवसर पर सम्वत् 2002 में उन्हीं महान् आचार्य प्रवर के पाटानुपाट आचार्य प्रातः स्मरणीय अखण्ड बाल ब्रह्यचारी चारित्र चूड़ामणि पूज्य गुरुदेव परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. के सदुपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने की भावना से प्रेरित होकर रत्नवंश की परम्परा के संघ सेवी महानुभावाओं द्धारा सम्यग्ज्ञान के प्रचार-प्रसार एवं शांसन सेवा के पुनीत उद्देश्य से बड़लू (भोपालगढ़) में ’’सम्यग्ज्ञान प्रचार मण्डल’ की संस्थापना की गई।
1. नाम व स्थापना इस संस्था का नाम ’’ सम्यग्ज्ञान प्रचारण मण्डल’’ है व रहेगा।
2. पंजीकृत कार्यालय इस संस्था का कार्यालय राजस्थान राज्य के जयपुर नगर में होगा।
3. उद्देश्य
- पृष्ठभूमि
- कार्यक्षेत्र
- उद्देश्य
- विविध आयाम
- आगामी कार्यक्रम
- संपर्क सूत्र
- बैंक की जानकारी
प्रारम्भ से यह संघ, परम्परा के मूलपुरूष पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी म.सा. के नाम से “कुशलवंश” नाम से सम्बोधित किया जाता रहा है। वि. सं. 1854 में क्रियोद्धार के समय से यह संघ महाप्रतापी परम पूज्य श्री रत्नचंद्र जी म. सा. के नाम पर “रत्नसंघ” नाम से जयविश्रुत हुआ। परम पूज्य आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के शासनकाल में विक्रम संवत 2032 में ब्यावर में श्रावक संघ का औपचारिक गठन हुआ। तब से परम्परा का श्रावक संघ ‘‘अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ’’ के नाम से कार्यरत है। स्थापनाकाल से ही संघ का मुख्यालय सामायिक-स्वाध्याय भवन, घोड़ों का चौक, जोधपुर में स्थित है।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ का मुख्यालय जोधपुर में रखा गया है। पुरे देश को 13 संभागों के रूप में विभक्त किया गया है। संघ का कार्य संचालन मुख्य कार्यालय के दिशा-निर्देशन में क्षेत्रीय प्रधान करते है। मारवाड़ सम्भाग, मध्य राजस्थान सम्भाग, जयपुर सम्भाग, पल्लीवाल सम्भाग, पोरवाल सम्भाग, गुजरात सम्भाग, महाराष्ट्र सम्भाग, मध्यप्रदेश सम्भाग, तमिलनाडु सम्भाग, आन्ध्रप्रदेश सम्भाग, कर्नाटक सम्भाग, पूर्वी भारत सम्भाग व दिल्ली सम्भाग में क्षेत्रीय प्रधान नियुक्त कर सम्पर्क सूत्र स्थापित किए गए है। संघ के विधान अनुसार कार्यकारिणी गठित कर सदस्य बनाए गये हैं।
सम्यग्ज्ञान, दर्शन व चारित्र की रक्षा एवं वृद्धि, मानव सेवा, समाजोन्नति, जीव दया तथा जैन संस्कृति के आदर्शानुकूल चतुर्विध-संघ सेवा, शिक्षा-दीक्षा में योगदान एवं चतुर्विध-संघ के उन्नयन और संगठन हेतु निम्न कार्य करना
- आचार्य श्री रत्नचन्द्रजी म.सा. एवं उनकी पट्टपरम्परा के आचार्यों एवं संत-सतियों की स्मृति में संस्थापित संस्थाओं को संचालित करना, संचालन में सहयोग देना एवं आवश्यकता पड़ने पर संचालन अपने अन्तर्गत लेना।
- श्रद्धा एवं विवेक के साथ ज्ञान, दर्शन व चारित्र की रक्षा एवं वृद्धि करना।
- अध्यात्मप्रेमी बन्धुओं की वात्सल्य भाव से सेवा व सहायता करना।
- त्यागानुरागी वैरागी भाई-बहिनों को सहयोग पूर्वक आगे बढ़ाना।
- चतुर्विध संघ की सार-सम्भाल करना
- चतुर्विध संघ की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना।
- संघ में संचालित नैतिक एवं आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देना।
- महापुरूषों की जन्म, दीक्षा, पुण्य तिथि एवं विशिष्ट प्रसंगों को साधना पूर्वक मनाना।
- संघ या इसकी विभिन्न सहयोगी संस्थाओं व न्यासों एवं शाखाओं की सम्पत्तियों का क्रय, प्राप्ति, रक्षण, संवर्द्धन व आवश्यक होने पर किराया उपार्जित करना एवं विक्रय करना ।
- सामाजिक कुरूतियों के उन्मूलन एवं समाज सुधार के लिए आवश्यक कार्य करना।
- संघ की उन्नति के लिए आवश्यक प्रवृत्तियों एवं संस्थाओं का गठन करना तथा उन्हें संचालित करना ।
- समाज सेवा व पारमार्थिक कार्यों को करना एवं इन कार्यों को सम्पन्न करने वाले व्यक्तियों अथवा संगठनों को प्रोत्साहित करते हुए सहयोग करना।
- मानव सेवा, जीव दया एवं इस हेतु कार्य करने वाली विभिन्न संस्थाओं को मानव सेवा एवं जीव दया के उद्देश्यार्थ आवश्यक सहयोग देना एवं आवश्यकता पड़ने पर संघ के अन्तर्गत करना, संघ में उनका विलीनीकरण करना।
- निर्व्यसनी सदाचारी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना तथा उनके लिए छात्रावासों की व्यवस्था व संचालन करना अथवा इसमें सहयोग देना।
- सत्साहित्य एवं आध्यात्मिक व नैतिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करना तथा प्रकाशन के लिए मुद्रणालय की व्यवस्था करना।
भारतीय प्राच्य संस्कृति एवं आगम ग्रन्थों के प्रचार-प्रसार तथा संरक्षण हेतु पुस्तकालय तथा वाचनालय की स्थापना करना। - सामायिक व स्वाध्याय की प्रवृत्ति का प्रचार-प्रसार करना।
निव्यर्सनता, शाकाहार एवं सदाचार मय जीवनशैली का प्रचार-प्रसार करना।
संघ सदस्यों, श्राविकाओं, युवकों एवं बालक-बालिकाओं को आध्यात्मिक, नैतिकता व समाज से जोड़ना तथा संघ सेवा हेतु संगठित करना। - गुणीजनों, समाजसेवियों, विद्वानों, तपस्वियों, स्वाध्यायी श्रावक-श्राविकाओं, संघ सेवी कार्यकर्ताओं, साधकों, वरिष्ठ श्रावकों, मुमुक्षु भाई-बहिनों तथा उच्च शिक्षा में योग्यता सूची में स्थान प्राप्त करने वाले संघ के छात्र-छात्राओं का अभिनन्दन व सम्मान करना तथा उन्हें ज्ञान, दर्शन, चारित्र व संघ सेवा में आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहित करना व उन्हें आवश्यक सहयोग प्रदान करना।
- संघ के अन्तर्गत चलने वाली संस्थाओं व सहयोगी संस्थाओं के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक आर्थिक सहयोग देना, उपलब्ध करवाना।
- सम्यग्ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र के विकास हेतु नैतिक एवं आध्यात्मिक पाठशालाओं, स्वाध्याय केन्द्रों, महाविद्यालयों एवं उच्च अध्ययन केन्द्रों की स्थापना करना, व्यवस्था एवं सहयोग करना।
- अध्यात्म साधना एवं रत्नत्रय आराधना के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करना तथा साधक व्यक्तित्व का निर्माण करना।
- प्राकृत, संस्कृत आदि प्राचीन भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन व अनुसंधान की व्यवस्था करना।
- हस्तलिखित ग्रन्थों, कलात्मक कृतियों, पुरातत्व व ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रह करना तथा उनकी सुरक्षा का प्रबन्ध करना।
- प्राचीन व अर्वाचीन आगम साहित्य का रक्षण, प्रकाशन करवाना तथा उनका विक्रय व वितरण करना।
- उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यकतानुसार संस्थाओं व ट्रस्टों का गठन करना, इन उद्देश्यों की पूर्ति में कार्यरत संस्थाओं को अपेक्षित सहयोग देना, संघ के अन्तर्गत लेना व संघ में विलीनीकरण करना।
- अन्य समस्त आवश्यक कार्य करना जो इस संघ के संगठन, प्रगति एवं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक हो।
रत्नसंघ के चहुँमुखी विकास में संघ व संघ की संस्थाएँ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से संघ की प्रगति व उन्नयन में निरन्तर गतिशील है। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल समस्त पाठकों की ज्ञानवृद्धि के लिए आगम के साथ ही उपयोगी साहित्य एवं जिनवाणी पत्रिका का निरन्तर प्रकाशन कर रहा है वहीं शिक्षण बोर्ड ज्ञानार्जन करने वालों के मूल्यांकन हेतु परीक्षाओं का आयोजन कर रहा है। स्वाध्याय संघ चातुर्मास से वंचित क्षेत्रों में पर्युषण पर्वाराधन हेतु स्वाध्यायी बन्धुओं की व्यवस्था कर जिनशासन सेवा में सन्नद्ध है। युवक परिषद् युवा बन्धुओं को एवं श्राविका मण्डल श्राविकाओं, बालिकाओं एवं बहूमण्डल को संघ-सेवा हेतु प्रेरित करने के साथ ही सामायिक-स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार में संलग्न है। संस्कार केन्द्र देश के विभिन्न क्षेत्रों में संस्कार केन्द्रों का संचालन कर जैन समाज के बालक-बालिकाओं को संस्कारित करने में अपनी अहम् भूमिका निभा रहा है।
आचार्य श्री शोभाचन्द ज्ञान भण्डार के अन्तर्गत दुर्लभ ग्रन्थों का संग्रह, संरक्षण, परीक्षण, प्रतिलेखन करने की दृष्टिकोण से भण्डार को घोड़ों के चौक स्थित पौषधशाला में व्यवस्थित रूप प्रदान किया गया है। 15000 हस्तलिखित शास्त्रों अति प्राचीन पाण्डुलिपियों के लगभग 3 लाख पृष्ठों का डिजिटलाईजेशन करवा कर कम्प्युटर हार्ड डिस्क में स्थाई रूप से सुरक्षित रखने की व्यवस्था की जा चुकी है। मूल प्रतिलिपियों को आधुनिक विधि से हस्तनिर्मित कागज के गत्तों व पन्नों में लपेट कर थैलियों में सुरक्षित रखी गई है और कीट-जीव आदि से बचाने की पूर्ण व्यवस्था पूर्व में की जा चुकी है। किसी भी ग्रन्थालय अथवा शोध संस्थाओं को किसी भी शास्त्र/ग्रन्थ की आवश्यकता हो तो माँग आने पर डिजिटलाईज सूची के माध्यम से सम्बन्धित शास्त्र की प्रति उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की जा रही है।
परम श्रद्धेय, अखण्ड बालब्रह्मचारी, प्रात स्मरणीय पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवन् पूज्य श्री 1008 श्री हस्तीमल जी म.सा. की सत्प्रेरणा से ईस्वी सन् 1973 में स्थापित इस संस्थान में वर्तमान में 42 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। वर्तमान में यहाँ की व्यवस्था निम्नानुसार है-
- छात्रों के आध्यात्मिक शिक्षण की व्यवस्था है जिसमें अंग्रेजी, कम्प्यूटर, दर्शन, आगम, कर्मग्रन्थ थोकड़े व सूत्रों आदि का अध्ययन कराया जाता है।
- पर्युषण पर्व पर संस्थान के सभी छात्र प्रतिवर्ष स्वाध्यायी के रूप में सेवाएँ प्रदान करते हैं। संघ द्वारा आयोजित विभिन्न शिविरों में अध्ययनरत विद्यार्थियों की अध्यापन सेवाएं भी प्राप्त होती है।
- अध्ययनरत सभी विद्यार्थियों को श्रद्धेय गुरु भगवन्तों के दर्शन-वन्दन एवं सेवा लाभ लेने हेतु भेजा जाता है।
- अब तक सेकड़ों छात्र संस्थान से अध्ययन करने के पश्चात् विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। वर्तमान में संस्थान के संयोजक पद का श्रीमती सुमनजी कोठारी-जयपुर, प्रबंधक पद का श्री पी.एस. लोढ़ा-जयपुर तथा अधिष्ठाता के पद का श्री दिलीपजी जैन-जयपुर दायित्व निर्वहन कर रहे हैं।
- सभी छात्रों की स्वास्थ्य जांच भंडारी अस्पताल, जयपुर द्वारा निःशुल्क करवायी जाती है।
आचार्य हस्ती मेधावी छात्रवृत्ति योजना के दस वर्ष पूर्ण हो चुके है। वर्ष 2016-2017 के लिए प्रतिवर्ष की तरह छात्र-छात्राओं को नवीनीकरण आवेदन पत्र एवं नये छात्र-छात्राओं से आवेदन पत्र भरवाकर लाभान्वित किया जा रहा है। वर्ष 2006-07 में सर्वप्रथम 130 छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की गयी थी, निरन्तर वृद्धिगत होते हुए वर्ष 2015-2016 में 452 छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की गयी। योजना समिति द्वारा छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थी छात्र-छात्राओं के धार्मिक ज्ञान की अभिवृद्धि हेतु शिविर का आयोजन भी आचार्य भगवन्त की सेवा में किया जा रहा है। शिक्षण बोर्ड की परीक्षा की अनिवार्यता को भी छात्र-छात्राओं को सूचित किया जाता है। इस योजना से छात्र-छात्राओं का गुरु भगवन्तों की सेवा, ज्ञान-ध्यान की ओर भी लगाव बढ़ा है। योजना से लाभान्वित ऐसे छात्र-छात्राएं भी तैयार हुए जो अपने स्थानीय क्षेत्रों में लगने वाले शिविरों में अध्यापन कार्य में सहयोग भी कर रहे हैं।
संघ की प्रवृत्तियों, गतिविधियों एवं चारित्रात्माओं के विचरण-विहार विषयक जानकारियों से युक्त ‘‘रत्नम’’ अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ का समाचार सन्देश पत्र है। रत्नम् का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। सम्प्रति सम्पूर्ण भारतवर्ष में लगभग 2500 संघ सदस्यों को रत्नम प्रेषित किया जा रहा है। जो गुरुभ्राता रत्नम प्राप्त करना चाहते है वे कृपया संघ कार्यालय को अपना पता अवश्य प्रेषित करावें साथ ही स्थानीय श्रीसंघों द्वारा सम्पन्न गतिविधियों एवं कार्यक्रमों की रिपोर्ट रत्नम में प्रकाशन हेतु आप संघ के केन्द्रीय कार्यालय को अवश्य प्रेषित करावें।
चतुर्विध संघ एवं विरक्त भाई-बहिनों के साथ संघ व संघ की संस्थाओं द्वारा समय- समय पर आयोजित होने वाले स्थानीय क्षेत्रीय एवं केन्द्रीय शिविरों के अध्यापन हेतु कुशल विद्वान अध्यापकों का सहयोग लिया जा रहा है। इस महनीय कार्य का संचालन शासन सेवा समिति के सम्माननीय सह संयोजक श्री कैलाशचन्दजी हीरावत-जयपुर के मार्गदर्शन में शिक्षा समिति मंत्री युवारत्न श्री विवेकजी लोढ़ा-जयपुर, समिति सदस्य श्री प्रशान्त जी कर्णावट-जयपुर द्वारा किया जा रहा है। सन्त-सतीवृन्द के तत्त्वज्ञान, सूत्रज्ञान, भाषा ज्ञान, व्याकरण ज्ञान के साथ-साथ प्रवचन शैली की योग्यता में अभिवृद्धि हेतु श्री प्रकाशचन्दजी जैन-जयपुर, श्री धर्मचन्दजी जैन-जोधपुर, श्री त्रिलोकचन्दजी जैन-जयपुर, श्री जिनेन्द्र जी जैन-जयपुर, श्री विनोदजी जैन-चेन्नई, श्री राकेशजी जैन-जयपुर, श्री धर्मेन्द्रजी जैन-जयपुर की सेवाएं अध्ययन-अध्यापन में ली जा रही है। अनेक संघ समर्पित सेवाभावी श्रावक-श्राविकाओं की भी समय- समय पर अध्यापन सेवाएँ प्राप्त हुई है। लिखित एवं प्रायोगिक पाठ्यक्रम बनाकर संत-सतीमण्डल के ज्ञान अभिवर्द्धन का विनम्र प्रयास किया जा रहा है। शिक्षा समिति के माध्यम से स्वाध्याय संघ के स्वाध्यायियों में से विशिष्ट प्रशिक्षक तैयार करने हेतु विशिष्ट अध्यापक प्रशिक्षण शिविरों में भी सभी अध्यापकों द्वारा अध्यापन सेवाएं प्रदान की जा रही है। शिविर में भाग लेने वाले शिविरार्थियों की परीक्षा हेतु पेपर भी शिक्षा समिति द्वारा तैयार किए जाते हैं।
चतुर्विध संघ के आधार स्तम्भ पूज्य संत-सतीवृन्द की रत्नत्रय साधना-आराधना में सतत् अभिवृद्धि हो रही है। वर्तमान में 117 सन्त-सती रत्नसंघ की दीप्ति को बढ़ाने में पुरूषार्थ कर रहे है। पूज्य संत-सती ही ज्ञान-दर्शन-चारित्र के पथ पर भव्यजनों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। कतिपय मुमुक्षु आचार्यप्रवर-उपाध्यायप्रवर प्रभृति संत-सतीवृन्द के पावन श्रीचरणों में ज्ञान-ध्यान, त्याग-तप और साधना-आराधना का अभ्यास कर रहे है। प्रत्येक श्रावक-श्राविका यह मनोरथ रखे कि ‘‘वह दिवस मेरा धन्य होगा जब मैं संसार की मोह-माया और विषय वासना का त्याग करके साधु जीवन स्वीकार करूंगा।’’ हम स्वयं संयम की भावना रखें, यही मानव जन्म का उद्देश्य व लक्ष्य है साथ ही संयम मार्ग में कदम बढ़ाते संतति, सम्बन्धियों व विरक्तात्माओं का सहयोग, भावना अभिवर्द्धन व अनुमोदन करें यही अभीष्ट है।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ द्वारा ज्ञान-दर्शन-चारित्र की वृद्धि एवं चतुर्विध संघ-सेवा हेतु विभिन्न गतिविधियों के संचालन में सहयोगी विशिष्ट संघ-सेवियों, तपस्वियों, कार्यकर्ताओं, गुणीजनों एवं प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों का गुणी अभिनन्दन के अन्तर्गत सम्मान किया जाता है। संघरत्न सम्मान, आचार्य हस्ती स्मृति सम्मान, युवा प्रतिभा शोध-साधना-सेवा सम्मान, विशिष्ट स्वाध्यायी सम्मान, एवं गुणी अभिनन्दन के अन्तर्गत विशिष्ट संघ-सेवी समाज-सेवी कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जाता है।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ जोधपुर द्वारा प्रतिवर्ष ‘‘जैन पंचांग’’ का प्रकाशन किया जाता है। इसमे तिथि मार्गदर्शिका के साथ ही विभिन्न पर्व तिथियां, पच्चक्खाण, पच्चक्खाण मार्गदर्शिका, रोहिणी नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, राहुकाल, दिषा शुल विचार, चन्द्र राशी विचार, दिन-रात के चौघड़िये आदि का समावेश किया जाता है। संघ एवं संघीय संस्थाओं के पदाधिकारियों की सूची भी इसमें प्रकाशित की जाती है।
संघ के कार्यक्रमों में सामायिक-स्वाध्याय, दया-संवर, उपवास-पौषध, पर्युषण पर्व की आराधना, महापुरुषों के विशिष्ट पर्व-दिवसों पर ज्ञान-ध्यान, त्याग-तप और साधना-आराधनाएं, होनहार युवक-युवतियों को शैक्षणिक क्षेत्र में आगे बढ़ाने का प्रयास, आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षण शिविर, संघ सम्पत्तियों का रक्षण एवं विस्तार, प्रवास कार्यक्रम के माध्यम से जनसम्पर्क एवं समस्या समाधान, वर्ष में एक बार गुरू दर्शन-वन्दन के अन्तर्गत व्रत-नियम अंगीकार करने की भावना। हमारे संत-सतीवृन्द गांव-गांव, नगर-नगर और सुदूर प्रदेशों तक पहुँच कर जन-जन में सामायिक-स्वाध्याय और निर्व्यसनता की प्रेरणा करते हैं। संघ सदस्यों का संघ-कार्यों में भावना पूर्वक सहयोग रहता है, संघ सदस्य विचरण-विहार में सेवाएं देते हैं, संत-सतीवृन्द के स्वास्थ्य में समाधि बनी रहे एतदर्थ श्रमणोचित औषधोपचार में श्रावक-श्राविकाओं का सहयोग रहता है। संघ में आडम्बर-प्रदर्शन के बजाय धर्म साधना निरन्तर-निर्विध्न चले अतः हमारे प्रबुद्ध श्रावक श्राविकाएँ अष्टमी-चतुर्दशी जैसी पर्व तिथियों पर दयाव्रत रखते हैं, संवर-साधना में समय का उपयोग करते हैं और व्रत-प्रत्याख्यानों के परिपालन में सजगता रखते हैं। संख्या बल में छोटा होते हुए भी रत्नसंघ की जैन जगत् में अपनी पहचान है और हम हमारी पहचान पर गर्व कर सकते है।
संघ संचालन में परम पूज्य आचार्य भगवन्त, परम पूज्य उपाध्याय भगवन्त, पूज्य गुरु भगवन्तों एवं पूज्या महासतीवृन्दों का पावन आशीर्वाद, सम्माननीय संघ संरक्षक मण्डल का मार्गदर्शन, संघ के सभी संघ-सेवी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओ का उत्तरदायित्व बोध एवं कर्तव्य निर्वहन के साथ ही आप सब संघ बन्धुओं का संरक्षण, स्नेह, सहयोग हमारे लिए प्रमुख संबल रहता है।
माह | दिनांक | विशेष दिवस/कार्यक्रम |
---|---|---|
मार्च | 15-03-2023 | आचार्य प्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का 85वाँ जन्म-दिवस (चैत्र कृ.8) |
अप्रेल | 03-04-2023 | भ. महावीर जन्म कल्याणक (चैत्र शु.13) |
अप्रेल | 23-04-2023 | आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. का 94वाँ आचार्य पद दिवस |
अप्रेल | 28-04-2023 | आचार्य भ. पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. की 32वाँ स्मृति दिवस (वैशाख शु.8) |
मई | 04-05-2023 | भावी आचार्य प्रवर श्री महेन्द्रमुनि जी म. सा. का 49 वा. दीक्षा-दिवस (वैशाख शु.14) |
मई | 10-05-2023 | आचार्यप्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का 32वाँ आचार्य पदारोहण दिवस (ज्येष्ठ कृ.5) |
जून | 02-07-2023 | चातुर्मास प्रारम्भ (चातुर्मासिक पर्व) |
जुलाई | 23-07-2023 | शिक्षण बोर्ड 1 से 12 कक्षाओं की परीक्षा का आयोजन |
अगस्त | 14-08-2023 | पर्युषण पर्व प्रारम्भ |
अगस्त | 21-08-2023 | संवत्सरी महापर्व, भावी आचार्यप्रवर श्री महेन्द्रमुनि जी म.सा. का तृतीय भावी आचार्य पद दिवस |
अगस्त | 25-08-2023 | भावी आचार्यप्रवर श्री महेन्द्रमुनि जी म.सा. का 70वां जन्म-दिवस (श्रावण शु. 9) |
सितम्बर | 24-09-2023 | श्राविका गौरव दिवस (संस्कार बोध दिवस) |
नवम्बर | 17-11-2023 | संघ समर्पण दिवस (संकल्प दिवस) |
नवम्बर | 19-11-2023 | आचार्यप्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का 61वाँ दीक्षा दिवस (कात्र्तिक शु.6) |
नवम्बर | 21-11-2023 | युवा शक्ति दिवस (व्यसनमुक्ति दिवस) |
नवम्बर | 26-11-2023 | चातुर्मास समापन (चातुर्मासिक पक्खी) |
मुख्य कार्यालय
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ
सामायिक स्वाध्याय भवन
प्लाट नं. 2, नेहरू पार्क
जोधपुर – 342003
TEL: 0291-2636763
Email: absjrhssangh@gmail.com
Bank Details
A/c Name :AKHIL BHARTIYA SHRI JAIN RATNA HITESHI SHRAVAK SANGH
A/c No. :00592191005570
Bank name :ORIENTAL BANK OF COMMERCE
IFSC Code :ORBC0100059
Branch :SOJATI GATE, JODHPUR (RAJ.)
साहित्य सदस्यता
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- E-प्रकाशन
- प्रकाशन
- सदस्यता शुल्क
- आगामी कार्यक्रम
- संपर्क सूत्र
- बैंक की जानकारी
सत्साहित्य का प्रकाशन-श्रावक-श्राविकाओं में सामायिक स्वाध्याय के प्रति रुचि बढ़े इस उद्देश्य से सत्साहित्य प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 1993 तक मंडल में लगभग 30-40 पुस्तकों का प्रकाशन होता था। वर्तमान में मंडल कार्यालय से लगभग 168 पुस्तकों का आगम, जैनधर्म का मैलिक इतिहास चारों भाग हिन्दीं, अंग्रेजी एवं गुजराती भाषा सहित का प्रकाशन हो चुका है। आचार्यप्रवर एवं उपाध्यायप्रवर के 50वें दीक्षा जयन्ति वर्ष के अन्तर्गत चार-पाँच नई पुस्तकों का प्रकाशन किया जना प्रस्तावित है, इस प्रकार मंडल से 200 से ऊपर पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है। हमारी हार्दिक अभिलाषा है कि मंडल के सत्साहित्य में निरन्तर अभिवृद्धि होती रहे इसके लिए जैनधर्म का मौलिक इतिहास भाग-5 को शीध्र प्रकाशित करने का प्रयत्न किया जा रहा है और यह भी चिन्तन है कि मंडल द्वारा 32 आगमों का भी प्रकाशन हो। वर्ष 1992 तक मंडल के सत्साहित्य के 300-350 आजीवन सदस्य थे जबकि 1993 से वर्तमान में मंडल से प्रकाशित सत्साहित्य के 774 आजीवन सदस्य बनें हुए हैं। इस तरह निरन्तर प्रगति की ओर कदम बढ़ रहे हैं।
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल से प्रकाशित सत्साहित्य की सूची निम्न प्रकार से है –
क्र.सं. | पुस्तक का नाम | लेखक/सम्पादक/प्रेरक | दर |
---|---|---|---|
1 | अमरता का पुजारी | पं. शशिकान्त झा | 15 |
2 | अमृत-वाक् | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 10 |
3 | अजीव पर्याय | श्री धर्मचन्द जी जैन | 5 |
4 | आवश्यक सूत्र (हिन्दी/अंग्रेजी) | संकलित | 10 |
5 | आवश्यक मलियागिरी वृत्ति | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 125 |
6 | आहार संयम और रात्रि भोजन त्याग | आ. श्री हीराचन्द्र जी म.सा. | 4 |
7 | आचाररांग सूत्र (मूल) | संकलित | 10 |
8 | आध्यात्मिक आलोक | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 50 |
9 | आत्म परिष्कार | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 5 |
10 | आत्म चिन्तन | श्री भंवरलाल जी बोथरा | 5 |
11 | आनुपूर्वी | संकलित | 10 |
12 | अहिंसा निउणा दिठ्टा | प्रो. कल्याणमल जी लोढ़ा | 40 |
13 | अध्यात्म की ओर | श्री जसराज जी चौपड़ा | 40 |
14 | अन्तगडदसा सूत्र | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 30 |
15 | अचित जल का विज्ञान एवं जल | डाॅ. जीवराज जी जैन | 50 |
16 | भक्तामर स्तोत्र | श्री जम्बू कुमार जी जैन | 10 |
17 | भगवान महावीर | संकलित | 40 |
18 | चौदह नियम | संकलित | 5 |
19 | 24 ठाणा का थोकड़ा | श्री धर्मचन्द जी जैन | 5 |
20 | उेपलशीषि झीरूशी | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 25 |
21 | दशवैकालालिकसूत्र | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 60 |
22 | दशवैकालालिकसूत्र (हिन्दी भावार्थ) | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 20 |
23 | दीक्षा कुमारी का प्रवास | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 25 |
24 | दो बात | श्री शशिकान्त म.सा. | 5 |
25 | दुर्गादास पदावली | मु. श्री लक्ष्मीचन्द जी म.सा. | 5 |
26 | दुःखहरित सुख | श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा | 40 |
27 | द्रव्यलोकप्रकाश | संकलित | 100 |
28 | एकादश चरित्र संग्रह | श्री सम्पतरात जी डोसी | 15 |
29 | ऐतिहासिक काल के तीन तीर्थमर | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 100 |
30 | गजेन्द्र सुक्ति सुधा | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 20 |
31 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 1 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
32 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 2 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
33 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 3 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 25 |
34 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 4 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
35 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 5 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
36 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 6 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
37 | गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग – 7 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
38 | गजेन्द्र पद मुक्तावली | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 5 |
39 | गमा का थोकड़ा | श्री धर्मचन्द जी जैन | 10 |
40 | गौतम से प्रभु फरमाते हैं | संकलित | 70 |
41 | गुणस्थान स्वरूप | श्री धर्मचन्द जी जैन | 5 |
42 | गुरु हस्ती-गुरु हीरा अनमोल भजन | संकलित | 20 |
43 | गुण सौरभ गणि हीरा | संकलित | 100 |
44 | ज्ञानसूत्र की कथायें | श्री दीपचन्द जी संचेती | 10 |
45 | ज्ञान लब्धि, द्रव्येन्द्रिय का थोपड़ा | श्री धर्मचन्द जैन | 2 |
46 | हीरा प्रवचन पीयूष भाग-1 | आ. श्री हीराचन्द्र जी म.सा. | 30 |
47 | हीरा प्रवचन पीयूष भाग-2 | आ. श्री हीराचन्द्र जी म.सा. | 30 |
48 | हीरा प्रवचन पीयूष भाग-3 | आ. श्री हीराचन्द्र जी म.सा. | 30 |
49 | हीरा प्रवचन पीयूष भाग-4 | आ. श्री हीराचन्द्र जी म.सा. | 30 |
50 | चिंतन के आयाम | डाॅ. धर्मचन्द जी जैन | 40 |
51 | जैनइतिहास के प्रसंग भाग-1 से 40 | संकलित प्रत्येक का मूल्य | 5 |
52 | जैन आचार्य चरितावली | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
53 | जैन स्वाध्याय सुभाषित माला | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 10 |
54 | जैन तमिल साहित्य और तिरुकुरल | डाॅ. इन्दरराज बैद | 20 |
55 | जैन धर्म का मौलिक इतिहास-1 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 250 |
56 | जैन धर्म का मौलिक इतिहास-2 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 250 |
57 | जैन धर्म का मौलिक इतिहास-3 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 250 |
58 | जैन धर्म का मौलिक इतिहास-4 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 250 |
59 | जैनधर्म का मौलिक इतिहास संक्षिप्त 1 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 75 |
60 | जैनधर्म का मौलिक इतिहास संक्षिप्त 2 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 75 |
61 | जैनधर्म का मौलिक इतिहास संक्षिप्त 3 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 75 |
62 | जैनधर्म का मौलिक इतिहास संक्षिप्त 4 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 75 |
63 | जैन लीजेण्ड (अँग्रेजी में) भाग-1 | संकलित | 150 |
64 | जैन लीजेण्ड (अँग्रेजी में) भाग-2 | संकलित | 150 |
65 | जैन लीजेण्ड (अँग्रेजी में) भाग-3 | संकलित | 150 |
66 | जैन लीजेण्ड (अँग्रेजी में) भाग-4 | संकलित | 150 |
67 | जैनागम के स्तोक रत्न | श्री केवलमल जी लोढ़ा | 20 |
68 | जैन विचारधारा में शिक्षा | श्री चाँदमल जी कर्णावट | 25 |
69 | जैन धर्म में ध्यान | श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा | 70 |
70 | जिनवाणी विशेषांक-जैनागम | संकलित | 50 |
71 | जिनवाणी विशेषांक-प्रतिक्रमण | संकलित | 50 |
72 | जिनवाणी विशेषांक-गुरु गरिमा और.. | संकलित | 100 |
73 | जिनवाणी विशेषांक-संवत्सरि | संकलित | 20 |
74 | जिनवाणी-आगमादर्श आ. श्री हीरा | संकलित | 100 |
75 | जिज्ञासा समाधन | श्री धर्मचन्दजी जैन | 25 |
76 | झलकियाँ जो इतिहास बन गईं | श्रीमती अनुपमा कर्णावट | 20 |
77 | जीवन निर्माण भूजावली | संकलित | 2 |
78 | जीवन अमृत की छाँव | शा.प्र. मैनासुन्दरी जी म.सा | 20 |
79 | जीव धड़ा | श्री धर्मचन्द जी जैन | 3 |
80 | जीव पज्जवा, काय स्थिति | श्री धर्मचन्द जी जैन | 5 |
81 | जीवन का संध्या काल | संकलित | 0 |
82 | कर्म प्रकृति | श्री धर्मचन्द जैन | 2 |
83 | कर्मग्रन्थ | श्री केवलमल लोढ़ा | 15 |
84 | कर्मग्रन्थ-1 | श्री धर्मचन्द जैन | 10 |
85 | कर्मग्रन्थ-2 | श्री धर्मचन्द जैन | 10 |
86 | कुलक कथायें | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 20 |
87 | कायोत्सर्ग | श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा | 50 |
88 | क्रियोद्वारक रत्नचंदजी म.सा. की … | डाॅ. इन्द्र जैन | 20 |
89 | कवयित्री महासती जड़ावकँवर जी … | डाॅ. इन्द्र जैन | 15 |
90 | लघुदण्डक | श्री धर्मचन्द जैन | 3 |
91 | लोकाकाश-एक वैज्ञानिक … | डाॅ. जीवराज जैन | 35 |
92 | नवतत्त्व | श्री धर्मचन्द जैन | 10 |
93 | निसीहज्झयणं (मूल) | संकलित | 10 |
94 | निग्र्रन्थ भूजावली | मु.श्री श्रीचन्द जी म.सा. | 40 |
95 | नमो गणि गजेन्द्राय | प्रो. कल्याणमल लोढ़ा | 20 |
96 | नैतिकता का विकास | प्रो. चन्दनबाला मारू | 20 |
97 | पच्चीस बोल (विवेचन सार्थ) | श्रीमती सुनीता मेहता | 10 |
98 | 25 बोल (मूल) | श्रीमती सुनीता मेहता | 3 |
99 | पाँच बात | मु. श्री लक्ष्मीचन्द जी म.सा. | 5 |
100 | पथ की रुकावटें | शा.प्र. मैनासुन्दरी जी म.सा. | 15 |
101 | प्रश्नव्याकरण सूत्र भाग-1 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 45 |
102 | प्रश्नव्याकरण सूत्र भाग-2 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 35 |
103 | प्रार्थना प्रवचन | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 15 |
104 | प्रथमा पाठ्यक्रम (प्रतिक्रमणसूत्र) | श्री पाश्र्व कुमार मेहता | 5 |
105 | प्रेरक कथाएँ | श्री गोतमचन्द जी जैन | 20 |
106 | पर्युषण साधना | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 5 |
107 | पर्युषण सन्देश | श्री जशकरण डागा | 20 |
108 | पर्युषण पर्वाराधन | शा.प्र. मैनासुन्दरी जी म.सा. | 15 |
109 | मुक्तक-मुक्ता | डाॅ. दिलीप धींगा | 15 |
110 | मुक्तक-राही | सम्पतराज चैधरी | 100 |
111 | मान व्याख्यान माला | नौरतन मेहता | 25 |
112 | महान् अध्यात्म योगी आचार्य हस्ती | डाॅ.चंदनबाला मारु | 25 |
113 | रत्नसंघ के धर्माचार्य | पं. दुःखमोचन झा | 25 |
114 | रत्नसंघ की दिव्य मणि | श्री धर्मचन्द जैन | 10 |
115 | रत्नस्तोक मंजूषा | श्री धर्मचन्द जैन | 5 |
116 | रत्न-मंजूषा | श्री रतनलाल सी बाफणा | 15 |
117 | 67बोल उपयोग, संज्ञा और … | श्री धर्मचन्द जैन | 2 |
118 | 47 बोल, 50 बोल व 800 बोल | श्री धर्मचन्द जैन | 5 |
119 | सबको प्यारे प्राण | श्री रतनलाल सी. बाफणा | 30 |
120 | समिति गुप्ति-गति आगति | श्री धर्मचन्द जैन | 2 |
121 | सामायिक सूत्र प्रवेशिका पाठ्यक्रम | संकलित | 5 |
122 | डरारूळज्ञ डीरा | संकलित | 5 |
123 | संस्कृत व्याकरण भाग-1 | श्री प्रकाशचन्दजी जैन | 10 |
124 | संस्कृत व्याकरण भाग-2 | श्री प्रकाशचन्दजी जैन | 10 |
125 | संस्कारम् | श्रीमती नीलूजी डागा | 150 |
126 | सप्त कुव्यसन | प्रो. चाँदमल कर्णावट | 5 |
127 | षडद्रव्य एवं विचार पंचशिका | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 5 |
128 | सिरि अन्तगडदासओसूत्र | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 35 |
129 | सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरी | श्री कन्हैयालाल लोढ़ा | 5 |
130 | शिवपूरी की सीढ़ियाँ | शा.प्र. श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. | 15 |
131 | शास्त्र स्वाध्याय माला | संकलित | 25 |
132 | श्रमण आवश्यक सूत्र | श्री पाश्र्वकुमार मेहता | 10 |
133 | श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र | श्री पाश्र्वकुमार मेहता | 10 |
134 | श्रावक के बारह व्रत | संकलित | 5 |
135 | श्री सामायिक सूत्र (सार्थ) | संकलित | 5 |
136 | श्री सामायिक सूत्र (मूल) | संकलित | 1 |
137 | श्री नवपद आराधना | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 5 |
138 | नन्दीसूत्रम् | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 60 |
139 | सुख विपाक सूत्र | श्री जम्बू कुमार जैन | 10 |
140 | स्वाध्याय स्तवन माला | श्री सम्पतराज डोसी | 35 |
141 | सामासिक साधना और स्वाध्याय | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 10 |
142 | उत्तराध्ययनसूत्र भाग-1 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 60 |
143 | उत्तराध्ययनसूत्र भाग-2 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 100 |
144 | उत्तराध्ययनसूत्र भाग-3 | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 100 |
145 | उत्तराध्ययनसूत्र हिन्दी | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 50 |
146 | उत्तराध्ययनसूत्र पद्यानुवाद | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 20 |
147 | उपासकदशांग सूत्र | श्री प्रकाशचन्द जी जैन | 60 |
148 | युवा सँवारे यौवन | श्री पदमचन्द जी गाँधी | 20 |
149 | वैराग्य शतक | मु.श्री लक्ष्मीचन्द जी म.सा. | 5 |
150 | विचारों के आभूषण | श्री रतनलाल सी. बाफना | 25 |
151 | व्रत प्रवचन संग्रह | आ. श्री हीराचन्द्र जी म.सा. | 10 |
152 | वृहत्कल्पसूत्रम् (सटीकम्) | आ. श्री हस्तीमल जी म.सा. | 30 |
153 | वृहद् आलोयणा | संकलित | 5 |
मण्डल का 20 वर्षिय साहित्य सदस्यता शुल्क सम्पूर्ण साहित्य का रुपये 4,000/-
माह | दिनांक | कार्यक्रम |
---|---|---|
जुलाई | आवश्यकसूत्र आगम का प्रकाशन, नियंता-संजया | |
अगस्त | 06.08.2016 | उपासकदशांगसूत्र पर संगोष्टि, किशनगढ़ अन्तगडसूत्र आगम का प्रकाशन |
07.08.2016 | उपासकदशांगसूत्र पर संगोष्टि, किशनगढ़ अन्तगडसूत्र आगम का प्रकाशन | |
सितम्बर | 17.09.2016 | कार्यकारिणी बैठक |
18.09.2016 | वार्षिक आमसभा | |
अक्टूबर | 01.10.2016 | विद्ववत परिषद् संगोष्टि, निमाज |
02.10.2016 | विद्ववत परिषद् संगोष्टि, निमाज | |
नवम्बर | ||
दिसम्बर | ||
जनवरी | ||
फरवरी | ||
मार्च | ||
अप्रैल | ||
मई | ||
जून |
मुख्य कार्यालय
Bank Details
A/c Name :SAMYAG GYAN PRACHARAK MANDAL
A/c No. :51026632997
Bank name :STATE BANK OF BIKANER & JAIPUR
IFSC Code :SBBJ0010843
Branch :BAPU NAGAR, JAIPUR(RAJ.)
जिनवाणी
- जिनवाणी
- प्रकाशन
- सदस्यता शुल्क
- संपर्क सूत्र
जिनवाणी पत्रिका – आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमलजी म.सा. बहुत दूरदर्शी एवं चिन्तनशील महापुरुष थे, उन्होंने चिन्तन किया कि समाज का ज्ञान बढ़ाने व श्रावक-श्राविकाओं में जानकारी के लिए एक जैन पत्रिका की अति आवश्यकता है। उस समय स्थानकवासी समाज में 1-2 जैन पत्रिका ही प्रकाशित होती थी वो भी सुचारू रूप से नहीं थी। अतः आचार्य भगवन्त ने सोच समझकर कि प्रभु की वाणी घर-घर पहुँचे। इस दृष्टि से पत्रिका का नाम ’’जिनवाणी’’ रखा जो अपने आप में आकषर्क है। इस पत्रिका का प्रकाशन ईस्वी सन् 1943 में जैन रत्न विध्यालय भोपालगढ़ से प्रारम्भ हुआ। कुछ वर्ष बाद जोधपुर में कार्यलय आ गया। वर्ष 1954 में जयपुर में कार्यलय प्रारम्भ हुआ। प्रारम्भ में करीब 30 पृष्ठों में साधारण कागज पर मुद्रित होती थी तथा मुख्य कवर पृष्ठ हैण्डमेड पेपर पर मुद्रित होता था। 1967 से डाॅ. नरेन्द्रजी भागवत सम्पादक बनें जबसे इस पत्रिका की अभिवृद्धि होने लगी।
अक्टूम्बर 1994 से डाॅ. धर्मचन्दजी जैन् ने सम्पादक पद ग्रहण किया तब से आज तक, विशेषकर आचार्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. द्धारा समय-समय पर मार्ग-दर्शन से व प्रोफेसर धर्मचन्दजी जैन के अथक प्रयास से यह पत्रिका अन्दर की विषय सामग्री एवं आकर्षक कवर आदि से जैन एवं जैनेतर समाज में विशेष प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी है। सन् 1967 से 1993 तक 73 से 85 पृष्ठ तक इसका प्रकाशन होता था। 1994 के बाद से वर्तमान में जिनवाणी हिन्दी मासिक पत्रिका 132 पृष्ठों के 5635 ही आजीवन सदस्य थे। 20 वर्ष के कार्यकाल से वर्तमान में 15465 आजीवन सदस्य तथा 141 विदेशों में आजीवन सदस्य, 207 स्तम्भ सदस्य, 119 संरक्षक सदस्य हैं।
अध्यात्म, धर्म, दर्शन, नैतिकता, इतिहास, संस्कृति एवं जीवन-मूल्यों की संवाहक जिनवाणी पत्रिका विगत 73 वर्षों से आपकी सेवा में पहुँच रही है। जनवरी 1943 से समय-समय पर विभिन्न महत्त्व के विषयों पर 17 विशेषामों का प्रकाशन हुआ है। इन विशेषांकों की लोकप्रियता इसी से सिद्ध हो जाती है कि वर्तमान में भी इनके गई विशेषांकों की निरन्तर माँग बनी हुई है।
जिनवाणी का सदस्यता शुल्क निम्न प्रकार है:-
(1) | जिनवाणी का देश में 20 वर्षीय सदस्यता शुल्क | 1,000/- |
(2) | विदेशों में शुल्क भारतीय मुद्रा | 12,500/- |
(3) | स्तम्भ सदस्यता | 21,000/- |
(4) | संरक्षण सदस्यता | 11,000/- |
(5) | त्रि वार्षिक सदस्यता रुपये | 250/- |
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जिनवाणी खाते का विवरण:-
Bank Name | STATE BANK OF BIKANER & JAIPUR |
A/c Name | JINWANI |
A/c Number | 51026632986 |
PAN Number | AABTS3915P |
IFSC Code | SBBJ0010843 |
मुख्य कार्यालय
दुकान नं. 182 के ऊपर,
बापू बाजार, जयपुर-302003 (राजस्थान)
फोन 0141-2575997, 2571163
फैक्स नं. 0141-4068798
Email : sgpmandal@yahoo.in
सामायिक स्वाध्याय भवन,
नेहरूपार्क जोधपुर – 342001 (राजस्थान)
फोन : 0291 – 2626279
सम्यग्ज्ञान मण्डल पदाधिकारी
- वर्ष 2019 - 2021
- वर्ष 2016 - 2018
- वर्ष 2013 - 2015
- वर्ष 2010 - 2012
- वर्ष 2007 - 2010
- वर्ष 2004 - 2007
- वर्ष 2001 - 2004
- वर्ष 1997 - 2001
- वर्ष 1994 - 1997
- वर्ष 1990 - 1994
- वर्ष 1986 - 1990
- वर्ष 1978 - 1986
- वर्ष 1973 - 1978
- वर्ष 1968 - 1973
अध्यक्ष
श्री चंचलमल जी बच्छावत
संयुक्त मंत्री
श्री वीरेंदर जी जामड़
कार्याध्यक्ष
श्री धर्मचन्द जी जैन
कोषाध्यक्ष
श्री रितुल जी पटवा
कार्याध्यक्ष
श्री विनयचन्द जी डागा
कार्याध्यक्ष
श्री अशोक जी सेठ
अध्यक्ष
श्री पारसचन्द जी हीरावत
कार्याध्यक्ष
श्री प्रमोद जी महनोत
कार्याध्यक्ष
श्री पदमचन्द जी कोठारी
मंत्री
श्री विनयचन्द जी डागा
अध्यक्ष
श्री कैलाशमल जी दुगड़
कार्याध्यक्ष
श्री सम्पतराज जी चौधरी
मंत्री
श्री विनयचन्द जी डागा
अध्यक्ष
श्री पी. शिखरमल जी सुराणा
कार्याध्यक्ष
श्री सम्पतराज जी चौधरी
मंत्री
श्री विरदराज जी सुराणा
अध्यक्ष
श्री पी. शिखरमल जी सुराणा
कार्याध्यक्ष
श्री नवरतन जी भंसाली
कार्याध्यक्ष
श्री आनन्द जी चौपड़ा
मंत्री
श्री प्रेमचन्द जी जैन
अध्यक्ष
श्रीमती सुशीला जी बोहरा
कार्याध्यक्ष
श्री गौतमराज जी सुराणा
मंत्री
श्री प्रेमचन्द जी जैन
अध्यक्ष
श्री चेतनप्रकाश जी डूंगरवाल
कार्याध्यक्ष
श्री ईश्वरलाल जी ललवाणी
मंत्री
श्री प्रकाशचन्द जी डागा
अध्यक्ष
श्री चेतनप्रकाश जी डूंगरवाल
कार्याध्यक्ष
श्री ईश्वरलाल जी ललवाणी
मंत्री
श्री विमलचन्द जी डागा
अध्यक्ष
श्री डॉ. सम्पतसिंह जी भांडावत
कार्याध्यक्ष
श्री टीकमचन्द जी हीरावत
मंत्री
श्री विमलचन्द जी डागा
अध्यक्ष
श्री डॉ. सम्पतसिंह जी भांडावत
कार्याध्यक्ष
श्री टीकमचन्द जी हीरावत
मंत्री
श्री चेतन्यमल जी ढढ्ढा
अध्यक्ष
श्री देवेन्द्रराज जी मेहता
कार्याध्यक्ष
श्री मोफतराज जी मुणोत
मंत्री
श्री चेतन्यमल जी ढढ्ढा
अध्यक्ष
श्री उमरावमल जी ढढ्ढा
मंत्री
श्री चन्द्रराज जी सिंघवी
अध्यक्ष
श्री सोहननाथ जी मोदी
मंत्री
श्री सज्जननाथ जी मोदी
अध्यक्ष
श्री इन्द्रनाथ जी मोदी
मंत्री
श्री नथमल जी हीरावत
छाया-चित्र
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