मुखवस्त्रिका (MUKHVASTRIKA)
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अपने मुख को ढकने का वस्त्र मुखवस्त्रिका कहलाती है। इसे बोलचाल की भाषा में मुंहपत्ति भी कहते है। व्यक्ति के अपने स्वयं के अँगुल से नाप कर इसे तैयार की जाती है। सामान्यतः इसका मापलम्बाई – 21 अँगुलचौड़ाई – 16 अँगुल सफेद रंग का कपड़ा लिया जाता है। उसके तीन बार फोल्ड करके आठ पट […]
माला (MALA)
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नवकार मंत्र, लोगस्स, नमोत्थुणं आदि-आदि का जप करने, उनको बार-बार बोलने, एक ही पाठ अथवा पाठांश को एक से अधिक बार बोलने में माला अत्यन्त उपयोगी रहती है। माला में प्रायः 108 मनके होते है। ये लकड़े के हो तो उत्तम है। धागे में 108 गांठे बनाकर भी माला तैयार की जा सकती है। पंच […]
पूंजणी (PUNJANI)
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कीड़ी—मकौड़ी आदि छोटे—बड़े सभी जीवों की रक्षा करने के लिए सहायक साधन पूंजणी कहलाती है। यह ऊन की बनी होती हैं। इसमें लगभग 52 फलियां होती हैं। ऊन की फलियां सफेद रंग की तथा उनका नीचे का हिस्सा मुलायम होना चाहिए ताकि प्रतिलेखना करते समय जीवों को ठेस नहीं पहुंचे, उनकी विराधना नहीं हो। चाहे […]
दुपट्टा (DUPATTA)
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नाभि से ऊपर के शरीर के भागों को ढँकने के लिये जो वस्त्र धारण किया जाता है, उसे दुपट्टा कहते हैं। यह वस्त्र भी बिना सिला हुआ तथा श्वेत रंग का होना चाहिए। श्वेत रंग पवित्रता, समता एवं शान्तता का प्रतीक होता है। जीवों की प्रतिलेखना कर उन्हें बचाया जाना भी सुगम हो जाता है, […]
दरी (DARI)
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संवर तथा पौषध आदि करते समय रात्रि में जब विश्राम करने की आवश्यकता होती है तब श्रावक-श्राविकाओं के बिछोने के रूप में दरी का उपयोग किया जाता है। यह जहाँ तक हो सके सूती धागे की बनी होनी चाहिए। सफेद रंग की अथवा हल्के (सपहीज)रंग की हो ताकि प्रतिलेखना अच्छी तरह से की जा सकें। […]
डांडिया (DANDIYA)
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पौषध, संवर, दयाव्रत, सामायिक-प्रतिक्रमण आदि करते समय रात्रि में लघुशंका करने जाने, गुरुदेवों के सान्निध्य में रात्रि में दर्शन-वन्दन, स्वाध्याय, तत्त्व चर्चा आदि हेतु जाते-आते समय पूँजकर चलना आवश्यक होता है, अन्यथा अनेकानेक जीवों की विराधना का दोष लग जाता है। पौषध आदि में रात्रि में पूँजकर आवश्यक गमनागमन करने के लिए डांडिया होना प्रत्येक […]
चोलपट्टा (CHOLPATTA)
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नाभि के नीचे के भागों को ढँकने के लिए जो श्वेत वस्त्र धारण किया जाता है, वह चोलपट्टा कहलाता है। यह वस्त्र बिना सिला हुआ होता है। यह वस्त्र इतना पतला नहीं हों कि पहनने का उद्देश्य ही पूरा न हो अर्थात् कपड़े में थोड़ी मोटाई होनी आवश्यक है।चोलपट्टा की साईजश्रावकों में सामान्यतः इसका मापलम्बाई – 2 […]
चादर (CHADAR)
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संवर, पौषध, दया व्रत आदि की साधना में रात्रि में ओढ़ने के लिए चादर का प्रयोग किया जाता है। यह भी सूती, सफेद रंग की तथा स्वच्छ होनी चाहिए। इसकी लम्बाई 2.25 मीटर तथा चौड़ाई 1.25 मीटर के लगभग मानी जाती है।
कम्बल (KAMBAL)
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सर्दियों में रात्रि में ओढ़ने के लिए ऊनी कम्बल का भी प्रयोग किया जाता है। यह कम्बल ऐसी ऊन की बनी होनी चाहिए, जिसमें मुलायम पना कम हो, रोएँ कम हो, जिसका प्रतिलेखन आसानी से किया जा सकता हो। इसकी लम्बाई, चौड़ाई लगभग चादर के समान समझनी चाहिए।
आसन (AASAN)
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जिस पर सुखासन, पर्यकासन आदि से स्थिरतापूर्वक बैठा जा सके, उसे आसन कहते है। किसी भी प्रकार की साधना-आराधना के लिए आसन स्वच्छ, सफेद रंग का होना चाहिए ताकि छोटे-से-छोटे जीव-जन्तु की विराधना से बच सकें। आसन की साईज बच्चों के लिए लगभग 1.5 x 1.5 फुट तथाबड़ों के लिए लगभग 2 x 2 फुट होनी चाहिए। आसन बहुत अधिक मुलायम, […]