रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-02 (Supatradaan Vivek-02)

घरबार, कुटुम्ब-परिवार को छोड़कर अनगार बने हुए अहिंसक और अकिंचन श्रमण निर्ग्रन्थ के सामने प्रश्न उपस्थित होता है कि वह अपनी प्रतिज्ञाओं को पालते हुए जीवन निर्वाह की अपिहकार्य अन्न पान्नादि की उपलब्धि किस प्रकार से करे? जब तक मुनि के साथ शरीर लगा हुआ है तब तक उसे आहारादि सामग्री देना अपरिहार्य होता है, […]

सुपात्रदान विवेक-01 (Supatradaan Vivek-01)

जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है किसी भी जीव की किसी भी प्रकार से हिंसा न हो उसका साधक विशेष रुप से ध्यान रखता है। आहारादि लेते समय छह काय की विराधना का यदि कोई प्रसंग गृहस्थ के द्वारा किया जा रहा है तो साधु वहाँ से आहारादि नहीं लेते। गोचरी, पानी के लिए घर […]