रत्नसंघ

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सुपात्रदान विवेक-12 (Supatradaan Vivek-12)

एक पदार्थ को भोगने वाले है दो तो एक-दूसरे की भावना देखकर दान दो। संसट्ठेण य हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा। दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा, जं तत्थेसणियं भवे ।। 36 ।।दुण्हं तु भंजमाणाणं, एगो तत्थ निमंतए। दिज्जमाणं ण इज्जिमाणं, छंदं से पडिलेहए ।। 37 ।। अहिंसा प्रेम की पराकाष्ठ है यदि एक पदार्थ को दो व्यक्ति भोगने वाला […]

सुपात्रदान विवेक-11 (Supatradaan Vivek-11)

साधु के निमित्त उपाश्रय में लाकर देना व साधु के लिए अन्य ग्रामादि से मंगवा कर देना। ऐसे आहार को साधु कष्टतम काल में भी कदापि ग्रहण न करे, कारण कि इस प्रकार के आहार को ग्रहण करने से अनेक दोषों के उत्पन्न होने की संभावना है। ऐसे दोष युक्त आहार लेना सर्वथा अयोग्यहै। क्यों […]

सुपात्रदान विवेक-10 (Supatradaan Vivek-10)

प्रभु महावीर ने अपने अप्रतिहत केवलज्ञान में अहिंसा भगवती को देखा, जो सब सुखों को देने वाली है, प्राणीमात्र से आत्मीयता के भाव सृजन करने वाली है। संसार में छोटे-बड़े जितने भी प्राणी हैं सभी की रक्षा करो, किसी को भी दुःख मत उपजाओ श्रावक की अहिंसा में अपूर्णता और साधु की अहिंसा में पूर्णता […]

सुपात्रदान विवेक-09 (Supatradaan Vivek-09)

ऊपर जो आहार-पानी लेने का निषेध किया गया है उसका यह कारण है इस प्रकार से बालक के अंतराय लगती है तथा भूमि आदि पर अलग रखने से साधु के गोचरी हेतु घर में प्रवेश करने पर यदि बच्चा रो रहा हो तो साधु आहार-पानी ग्रहण नहीं करे बच्चे के रोने के कारण या तो […]

सुपात्रदान विवेक-08 (Supatradaan Vivek-08)

घर में यदि गृहस्थ टीवी देख रहे हो और साधु-साध्वी का प्रवेश हो जाए तो साधु के लिए टीवी बंद नहीं करे जिस स्थिति में है उस स्थिति में बैठे रहे तो घर असुझता नहीं होता वे असुझते है। अन्य सदस्य आहारादि बहरा सकते हैं। यदि गृहस्थ साधु के आने पर उन्हें देखकर टीवी, एमबी, […]

सुपात्रदान विवेक-07 (Supatradaan Vivek-07)

समणं माहणं वाणि, किविणं वा वणमिगं। इवसंकमंत भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व संजए।। साधु-भिक्षार्थ गाँव में किसी गृहस्थ के यहाँ गया, परन्तु वहाँ क्या देखता है कि घर के आगे द्वार पर श्रमण-बौद्ध आदि भिक्षु, ब्राह्मण, कृपण तथा दरिद्र आदि पुरुषों में से कोई खड़ा हो तो साधु उनको को लाँघकर गोचरी के लिए घर में न […]

सुपात्रदान विवेक-06 (Supatradaan Vivek-06)

अहुणोवलित्तं उल्लं, दहूणं परिवज्जए। जहाँ कहीं भी लिपा गया हो या गीलापन हो, वे सभी स्थान साधु के लिए वर्जनीय है, उक्त स्थानों पर जाने से साधु के लिए इसलिये निषेध है कि वहाँ पर गमन करने से साधु से संयम-विराधना होने की संभावना है। कारण-ऐसे स्थानों पर गीलापन-चिकनापन होने से पैर आदि फिसलने की […]

सुपात्रदान विवेक-05 (Supatradaan Vivek-05)

विवेक पूर्वक देना है आहार इससे ही होता है जीव उदार यहीं है कर्मों की निर्जरा का आधार? आहार-पानी देने वाला व्यक्ति असावधानी पूर्वक आहार दे रहा हो तो- आहरंत सिया तत्थ, परिसडिज्ज भोयणं। दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पइ तारिसं ।। 28 ।। देने वाला दाता (स्त्री) कदाचित् इधर-उधर गिराती हुई साधु को भोजन दे […]

सुपात्रदान विवेक-04 (Supatradaan Vivek-04)

आजकल प्रायः सभी के घर फ्लैटों में या कॉलोनियों में होने से चोरी आदि के डर से घरों के दरवाजे अंदर से बंद रखते हैं आगन्तुक के द्वारा डोर बोल या घंटी बजाने पर ही गेट खोला जाता है। साधु गोचरी के लिए जाते हैं तो उस समय गृहस्थों को अपने घर के दरवाजे खुले […]

सुपात्रदान विवेक-03 (Supatradaan Vivek-03)

संयम पालन के लिए प्राणों को कितनी बड़ी आवश्यकता है यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। प्राणों की रक्षा आहार से होती है। अतः संयमी का कर्त्तव्य है कि, शुद्ध संयम पालन के लिए शुद्ध आहार की ही गवैषणा करे दुषित आहार की कदापि इच्छा न करे। परंतु गवेषणा के साथ बात और […]