रत्नसंघ

Menu Close
Menu Close

सुपात्रदान विवेक-22 (Supatradaan Vivek-22)

साणी पावार……………….उग्गहंसि अज्जाइया।। गृहपति की आज्ञा के बिना साधु किसी द्वार आदि आवरण को इसलिए न खोले कि न जाने अंदर गृहस्थी की कौन-सी क्रिया हो रही हो? ऐसे में यदि मुनि अचानक उसके पास पहुँच जायेंगे तो घर वालों को क्रोधादि उत्पन्न होने की संभावना है अतः समय के जानने वाले विवेकशील साधु जैसा […]

सुपात्रदान विवेक-21 (Supatradaan Vivek-21)

साणी पावार पिहियं, अप्पणा नावपंगुरे।कवाडं नो पणुल्लिज्जा, उग्गहंसि भजाइया।।18।। सन की बनी हुई चिक से अथवा कपड़े से ढ़ंके हुए द्वार को गृहपति की आज्ञाके बिना साधु अपने हाथ से न खोले। गृहपति की आज्ञा के बिना साधु किसी द्वार आदि आवरण को इसलिए न खोले कि न जाने गृहस्थी की कौन-सी क्रिया हो रही […]

सुपात्रदान विवेक-20 (Supatradaan Vivek-20)

भिक्षाके 42 दोषों में से 16 उद्गम के, 16 उत्पादन के और 10 एषणा के दोष बताए गये हैं, भिक्षा देते समय गृहस्थ द्वारा लगने वाले दोषों को उद्गम दोष कहते हैं। साधु के द्वारा लगने वाले दोषों को उत्पादन के दोष कहते हैं। साधु तथा श्रावक दोनों के द्वारा लगाने वाले दोषों को एषणा […]

सुपात्रदान विवेक-19 (Supatradaan Vivek-19)

आचारांग के प्रथम अध्ययन उद्देशक 7 से41, 42 सूत्र में साधु को कैसा पानी ग्रहण करना चाहिये इसके बारे में दिग्दर्शन कराया गया है। साधु को वह पानी ग्रहण करना चाहिए जो शस्त्र परिणित हो गया है और जिसका वण गंध रस बदल गया है। अतः बर्तन आदि का धोया हुआ प्रासुक पानी यदि किसी […]

सुपात्रदान विवेक-18 (Supatradaan Vivek-18)

साधु-साध्वियों को निर्दोष शय्या देकर जो तिरने वाला है वह शय्यातर कहलाता है यहाँ शय्या का अर्थ मकान से लिया गया है। अर्थात् दशाश्रुत स्कंधसूत्र द्वितीय दशा में 21 शबल दोष मेंसे 11वाँ शबल दोष बताया है-सागरिय पिडं भुंजमाणे सबले। आश्रयदाता के आहार को भोगने सेशबल दोष लगता है साधु जिस घर में ठहरे उसे […]

सुपात्रदान विवेक-17 (Supatradaan Vivek-17)

जिस स्थान पर अथवा जहाँ कही भी फूल और बीज बिखरे हुए हो, पक्षी आदि को (चुग्गा) दाना-पानी आदि दिया जाता हो जहाँ (किडी नगरा) चींटियों आदि को अन्न दिया जाता हो। गाय-भैंस चारा चर रही हो ऐसे स्थानों पर जाने से संयम की विराधना व आत्म विराधना होने की संभावना हो सकती है। साथ […]

सुपात्रदान विवेक-16 (Supatradaan Vivek-16)

साधु की वृत्ति, प्रवृत्ति एवं कृति निर्दोष कल्याणकारी होती है। एलगं दारगं साणं, वच्छगं वा वि कोट्ठए। उल्लंघिया न पविसे, विउहित्ताण व संजए।। 22।। भिक्षार्थ जाता हुआ साधु गृहस्थ के घर में प्रवेश करते समय घर के प्रवेश द्वार पर यदि गाय, गाय का बछड़ा, बकरा, कुत्ता या बालक अथवा अन्य कोई पशु हो तो […]

सुपात्रदान विवेक-15 (Supatradaan Vivek-15)

णीअदुवारं तमसं, कुट्ठगं परिवज्जए। अचक्खुविसओ जत्थ, पाणा दुप्पडिलेहगा।।20।। जिस घर का दरवाजा बहुत नीचा हो, अथवा जिस कोठे में घोर अंधकार हो जहाँ पर नेत्रेन्द्रिय (चक्षुन्द्रिय) कुछ काम न देती हो और जहाँ पर त्रस जीव दिखाई न पड़ते हो, साधु ऐसे घरों को छोड़ दे अर्थात् आहार-पानी लेने के लिए वहाँ न जाएँ। साधु […]

सुपात्रदान विवेक-14 (Supatradaan Vivek-14)

जैनधर्म का महल अहिंसा की नींव पर खड़ा है, अहिंसा जैनधर्म काप्राण है। गृहस्थ तथा मुनियों के लिए जितने भी व्रत-नियम बनाए गए है उनका मूलाधार अहिंसा है। असत्य चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह आदि इसीलिए पाप माने जाते हैं क्योंकि ये हिंसा को प्रोत्साहन देते हैं। आचारांग सूत्र में भगवान महावीर कहते हैं किसी प्राण, […]

सुपात्रदान विवेक-13 (Supatradaan Vivek-13)

सच्चे श्रावक की पहचान, देंगे हम निर्दोष दान, जिससे बनेगा जीवन महान्।उद्देसियं कीयगडं, पूडकम्मं च आहडं। अज्झोयर पामिच्चं, मीसजायं विवज्जए।। 55।। इस सूत्र में इस बात का प्रकाश किया गया है कि साधु को 7 प्रकार का आहार नहीं लेना चाहिए। जैसे कि-1. केवल साधु के निमित्त बना हुआ आहार,2. खरीदकर दिया हुआ,3. आधाकर्मी आहार […]